फिर सदाबहार काव्यालय- 33
शीर्षक, लेखक और संदेश एक, कविताएं दो
पंछियों की सीख- 1
वृक्षों का जो दर्द सुने,
उनका जो हमदर्द बने,
वही है सच्चा मित्र वृक्ष का,
कहते हैं ये वृक्ष घने.
वृक्ष खड़े हैं बनकर मूक,
जिन पर रही कोयलिया कूक,
कहते पंछी ”सुन रे मानव,
दानव बनने की तज भूख.
इतना क्यों खुदगर्ज़ बना तू,
वार उसी पर करता है,
जो देता है तुझको साँसें,
छाँव भी तुझको देता है.
वर्षा-जल से भिगो धरा को,
रखते मिट्टी को ये नम,
जल पहुंचाते धरा के नीचे,
जल-स्तर न होने देते कम.
वृक्षों की सेना के समक्ष,
प्रदूषण हार हो गया पस्त,
फल, फूल, बीज, औषधियाँ देते,
जड़ी-बूटियों हित वरद-हस्त.
अपने ही प्रहरी पर बोलो,
क्यों करते हो प्रखर प्रहार,
यही तुम्हारे जीवनदाता,
देते यही तुम्हें आहार.
जो केवल देते-ही-देते,
बदले में कुछ नहीं हैं लेते,
जिसकी गोद में बैठ कर,
बोधिसत्व हुए गौतम बेटे.
उनको ही तू समझे निर्बल,
वृक्ष महान हैं वृक्ष देव हैं,
पत्थर खाकर भी फल देते,
ऐसी गरिमा वाले वृक्ष हैं.
हम भी वृक्षों पर पलते हैं,
उनको नित्य नमन करते हैं,
अगर कभी इक पेड़ को काटे,
दस लगाने की सीख देते हैं.
समझ नहीं ‘गर तुझमें बंदे,
हमसे ही तू जीना सीख,
खुद के लिए जीना क्या जीना,
औरों के लिए भी जीना सीख.”
सुदर्शन खन्ना
पंछियों की सीख-2
पंछी कलरव करते हैं
मन ये सभी का हरते हैं
अद्भुत रंगों से रंगे ये
जीने का गुर देते हैं
चिड़िया देखो क्या कहती है
थोड़ा-थोड़ा चुगती है
ज्यादा का नहीं लालच उसको
है यह समझाती हम सबको
कोयल बोलकर मीठी बोली
हमको यह समझाती है
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय
औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय
कांव-कांव करता है कौवा
कुदरत का मेहतर है कौवा
स्वच्छ रहो हे मानव तुम
देता बहुत बड़ी इक सीख.
कबूतर करता है गुटर-गूं
प्रेम से मिल सब रहो तुम यूं
चील-बाज उड़ ऊंचे नभ में
जीवन में तुम छू लो ऊंचाइयां
उड़ते उड़ते देते सीख
गर्दन उल्लू की है निराली
चारों ओर करे रखवाली
जीवन में पल पल रहो चौकस
घूम-घूम कर देती संदेश
मिट्ठू तोता टें-टें करता
हरी मिर्ची से पेट है भरता
हर जलन को तुम भोज बनाओ
तीखे को तुम गले लगाओ
रंग-बिरंगा मोर नाचता
आंखों में है सबकी भाता
तुम भी ऐसा कुछ कर जाओ
दुनिया में खुशियां लुटाओ.
सुदर्शन खन्ना
मेरा परिचय
21 जुलाई 2018 को ब्लॉग लेखन के क्षेत्र में मेरे पदार्पण के लिए मैं अपनी सहधर्मिणी और दोनों बेटियों के प्रति कृतज्ञ हूँ । मेरे स्वर्गीय पिताजी श्री कृष्ण कुमार खन्ना जी के प्रति मैं आजीवन ऋणी रहूँगा जिन्होंने मुझे ज्ञान प्राप्त करने में हमेशा मदद की और अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर मेरा संबल बढ़ाया । मेरी पूजनीय माता श्रीमती राज रानी खन्ना का ममत्व और आशीर्वाद मेरे लिये स्तम्भ का कार्य करता है । वे इस समय 82 वर्ष की हैं । ब्लॉग लेखन की शुरुआत का मेरे लिए अर्थ था एक बीज बोया जाना । बीज बोने के बाद उसका प्रस्फुटन होकर एक पौधे का रूप लेना और फिर आशीर्वाद रूपी खाद लेकर वृक्ष में विकसित होने की प्रक्रिया का आरम्भ होना । अतः ‘दरख्त’ विषय से ब्लॉग लेखन की शुरुआत करना मुख्य कारण रहा । अपना ब्लॉग पर ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक वृक्ष को आपका स्नेह और आशीर्वाद निरन्तर मिल रहा है और यह विकसित हो रहा है, इसके लिए मैं आभारी हूँ । सुदर्शन और नवयुग दोनों ही नाम माता-पिता के दिए हुए हैं अतः ‘सुदर्शन नवयुग’ ब्लॉग को मैं अपने माता-पिता को समर्पित करता हूँ ।
सुदर्शन खन्ना
ब्लॉग साइट- सुदर्शन नवयुग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/mudrakalagmail-com/
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सुदर्शन खन्ना की कोमल बनाम धारदार लेखनी से ही संभव है- शीर्षक, लेखक और संदेश एक, कविताएं दो
पंछियों की सीख- 1 और 2.
अलग-अलग कविता, सीख–संदेश एक, कलेवर विस्तृत. कहीं पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने की तमन्ना तो कहीं अपनी पूरी क्षमता से जग-जीवन को सुरक्षित रखने की आकांक्षा. सुदर्शन भाई, बधाइयां और शुभकामनाएं.
अनगिनत टेढ़ी मेढ़ी चलने वाली कलमों को सही चलना सिखलाने वाली शिक्षिका के अर्थ को परिभाषित और विस्तारित करती हुईं आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. कदम कदम पर मार्ग प्रकाशित और प्रशस्त करते आपके दिग्दर्शन अमूल्य हैं. वर्तमान कविताएं भी आपसे निरंतर मिलती प्रेरणा का परिणाम हैं. आप निस्संदेह धन्यवाद की पात्र हैं, हार्दिक आभार. इन कविताओं में स्पष्ट सन्देश हैं. प्रकृति और इसकी रचनाएं जहाँ हमारे जीवन में आनंद बोध कराती हैं वहीँ इनमें अनेक सन्देश छुपे होते हैं. इन कविताओं के माध्यम से उन्हें सभी तक पहुँचाने का एक प्रयास है. सादर.
टेढ़ी मेढ़ी चलने वाली लकीरों रूपी सांसें जीवंतता की निशानी है, इन टेढ़ी मेढ़ी चलने वाली कलमों को जीवंत करने की कल्पना का आनंद ही अद्भुत है.