गजल
इंसान का नीर हूँ कोई साहिल नहीं हूँ मैं
तेरे प्राण का दम हूँ, मकान का झिलमिल नहीं हूँ मैं।
सभी के ज्ञान से जगत् में बड़े ज्ञान है मुझें
लफ्ज का ज्ञान है मुझें, बड़े काबिल नहीं हूँ मैं।
लफ्ज का ज्ञान है मुझें, बड़े काबिल नहीं हूँ मैं।
खुदा हूँ मैं,सभी दिल से इबादत करता है मुझें
प्राणियों के दिल में हूँ मगर महफिल में नहीं हूँ मैं।
मैं इश्क हूँ तो दूर हूँ सब करीब मान लेते हैं
मान लो दम से ज्यादा कभी हासिल नहीं हूँ।
मान लो दम से ज्यादा कभी हासिल नहीं हूँ।
इंसान का सहारा हूँ पुराने समय से खड़ा हूँ
हिमालय हूँ तो अड़ा हूँ कोई सिल नहीं हूँ मैं।
मंजिल हूँ मैं, किस्मत के भरोसा मत छोड़ों मुझें
जिंदादिली से सफर करों तू मुश्किल नहीं हूँ मैं ।
— अनुरंजन कुमार “अँचल”