कविता

जननी को लजाते हो!!

जिस योनि से
दुनिया में आते हो
जिन स्तन से
भूख मिटाते  हो
देख इनको
ललचाते हो
कामाग्नि में
अंधे होकर
बेटी/बहन
भूल जाते हो
पौरुष का रौव
दिखाते हो
आंँखों से ही
ना जाने
कितनी बार
भोग जाते हो
हवस में
नर/पिशाच बन
बलात्कार हत्या
कर जाते हो
मर्यादा को
तार-तार कर
जननी को लजाते हो
पुरुष कहलाते हो
 — डॉ रचना सिंह “रश्मि”

डॉ. रचना सिंह "रश्मि"

साहित्कार/सोशल एक्टिविस्ट आलेख कहानियां लघु कथाएं रचनाएं हाइकु आदि लिखती हूं। रचना़ओ और आलेखो को राष्ट्रीय एवं स्थानीय एवं स्तर के समाचार पत्र पत्रिकाओं में स्थान मिल चुका है। 42सम्मान मिलें.है .जिसमें. राष्ट्रीय राजकीय व स्थानीय स्तर के है प्रकाशित- शब्द संमदर, ई पत्रिका नारीशक्ति सागर, हिन्दी सागर , गीतगुंजन, काव्य रत्नावली, काव्य अंकुर, शब्दाजंलि, हकीकत से सपनों तक साझा संकलन समकालीन साहित्य और किन्नर समाज आदि आगरा उप्र