गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कसक दिल में उठती रहेगी तुम्हारे लिये।
आंख भी रोज भरती रहेगी तुम्हारे लिये।।
बेरूखी तुम्हारी दर्द मेरा बढ़ाती ही रहेगी।
इक आह निकलती रहेगी तुम्हारे लिये।।
जिस गली मे चर्चा तुम्हारा होगा सनम।
वही पर रूह मचलती रहेगी तुम्हारे लिये।।
बीच मझधार में तुमने दामन छोड़ा मेरा।
अब जिन्दगी डसती रहेगी तुम्हारे लिये।।
ख्वाब में तुम आकर रोज मिलते रहोगे।
सहर आकर छलती रहेगी तुम्हारे लिये।।
जब दिल करेगा फैसला हमारा तुम्हारा।
संगीन शाम जलती रहेगी तुम्हारे लिये।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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