दर्शनाभिलाषी
नदी जब सूख जाती
मछलिया हो जाती मृत
सूखी नदी से पुल का मान
घट जाता
संकेतक मुँह चिढ़ाते
पुल पर जब पानी हो
नदी पार करना मना
नदी सूखी तो
जीवन सूखा
लेकिन जब नदी आती
पुरे वेग से बहती नदी
देखने पूरा गाँव जाता
वेग ऊँचाई का मनन चलता
बहती नदी की ख़ुशी
लगता मानो त्यौहारों के मौसम में
लड़की का अपने मायके आना
सब हाल चाल पूछते
जैसे नदी का पूछा जाता
बारिश में
सौभाग्यशाली वे गाँव होते
जिनके किनारे बहती नदी
कभी क्रोधित हो जाती नदी
नदी में उड़ेला हो इंसानों ने कचरा
उफान से बहा ले जाती कचरा
हो जाते गाँव /शहर निर्मल
स्वच्छता का दायित्व
अपने कर्तव्य से
निभा जाती
पुल हो जाता बेबस
उसकी नहीं चलती
बहती नदी के सामने
नदी का वेग कम होने से
देती वो रास्ता पुल पार होने का
नदी कलकल के स्वर में गाती
नाव भी इठलाती
बिन पानी के नदियाँ
नदी नहीं कहलाती
नदियों को माँ का दर्जा
माँ के आँचल में सदा रहे
पूजा अर्चन करें
स्वच्छ रखे
ख्याल रखे
क्योकि है हम सब
दर्शनाभिलाषी
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि’