भारत माँ की करो आरती ।
सुंदर पावन धरा भारती ।।
प्राची में फैले जब कुंकुम ।
शीश नवाये दिनकर हरदम ।
सुबह यहां की बड़ी निराली,
अँगना नवरस से बुहारती ।
सुंदर पावन धरा भारती ।।
खड़ा हिमालय,जीवट प्रहरी ।
नदियाँ जिनमें ,ममता गहरी ।
सुरसरिता सी पावन नदिया,
भवउदधि से पार उतारती ।
सुंदर पावन धरा भारती ।।
मधुमासों में मस्त धरा हो
लगती है जैसे अप्सरा हो
लरजती है आम की डाली
कोयलिया जब है पुकारती
सुंदर पावन धरा भारती ।।
अभिनन्दन करते हैं भँवरे ।
तितलियों के पर हैं सुनहरे ।
स्वच्छ सुगन्धित वायु बहती,
स्वर्ग धरा पर है उतारती ।
सुंदर पावन धरा भारती ।।
संस्कृतियाँ मलयानिल चन्दन ।
भाषाएँ भी यहाँ हैं अनगिन ।
हर घर है एक तीर्थ यहां पर,
प्रेम से सबको है पालती ।
सुंदर पावन धरा भारती ।।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)