ग़ज़ल
कहते हैं कि तू ज़र्रे-ज़र्रे में रहता है।
सदियों से जमाना यही कहता है।।
लगता है कि मेरे रगो-रेशे में तू है,
तू जो कहलवाता है वही कहता है।
मेरा वजूद ही तू है तुझसे मैं,
मेरी रूह का इत्मीनान यही कहता है।
ताजिंदगी तेरा – मेरा साथ रहे,
जो भी कहता है यही कहता है।
दुनिया के फलसफ़ों ने टुकड़े किए तेरे,
मगर तू एक है ‘शुभम’ यही कहता है।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’