सुनामी से साहस
आपदा कब किसी से पूछकर आती है! फिलीपींस में 20 लोगों पर भी अकस्मात आपदा आ गई. 16 विदेशी और 4 फिलीपींस के लोग नाव पर सवार होकर जा रहे थे कि तभी बीच में नाव पलट गई. सबके मोबाइल भीग गए, पर एक व्यक्ति का मोबाइल भीगने के बावजूद बचाव से सम्पर्क करने में कामयाब हो गया. इस तरह पानी में फंसे 20 लोगों तक पहुंचने और उन्हें बचाने में मदद मिली. इस वाकये को पढ़ते हुए मुझे इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय मूल के गुरमैल भाई की जल में ही सुनामी से साहस की स्मृति हो आई.
बात 2003 की है, वे इंग्लैंड से घूमने गोआ गए थे. गोआ के अंजुना बीच पर घूमते हुए एक बहुत ऊंची पानी की लहर उनको पानी में घसीट कर ले गई. उन्हें लगा कि उनका अंत हो जायेगा. फिर भी वे अपने बचाव के लिए हाथ-पांव मारते रहे. इसी दौरान एक और लहर ने उन्हें बीच पर पटक दिया और बहुत चोटें लगीं. जब वे इंग्लैंड आये तो वे गिरने लगे, उनकी आवाज़ बदलने लगी. शरीर में शक्ति खतम होने लगी. उन्हें मोटर निऊरोन डिज़ीज़ ने जकड़ लिया था.
बस चलाकर सारे इंग्लैंड-वासियों को सैर कराने वाले गुरमैल भाई घर में भी चलने को मोहताज हो गए, तबले पर उंगलियों की थाप लगाकर जादू जगाने वाली उंगलियां निस्तेज हो गईं, ”जिंदगी है सफर इक सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना.” गाने वाल कंठ कुण्ठित हो गया, यानी वे हर तरह से लाचार हो गए थे.”
सुनामी हो या विक्टोरिया तूफान, उसके जाने के नाद भी जिंदगी बराबर चलती रहती है. गुरमैल भाई के साहस का जवाब नहीं! उन्होंने सुनामी से भी साहस पाया. वे बोल नहीं सकते पर बोलने की कोशिश करते हैं, लिख नहीं सकते, लिखने की कोशिश कर रहे हैं, हाथ नहीं चला सकते, हाथ चलाने की कोशिश कर रहे हैं, चल नहीं सकते, चलने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी हमसफर कुलवंत जी गुरुद्वारे से आती हैं, तो उनको चाय तैयार मिलती है, वे परोस नहीं सकते सो परोसने का काम कुलवंत जी करती है. उनके जन्मदिन पर उनसे बात करना एक अनोखा अनुभव होता है.
परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की,
वो खुद ही तय करते हैं मंज़िल आसमानों की,
रखते हैं जो हौसला आसमां को छूने का,
उनको नहीं होती परवाह गिर जाने की.