फिर सदाबहार काव्यालय-34
चलती रही जिंदगी
कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी.
कभी फूलों की सेज पर करवटें बदलती रही जिंदगी,
कभी कांटों की शैय्या पर भी चैन से सोती रही जिंदगी.
कभी आतंक के आतंक से ही आतंकित हो जलती रही जिंदगी,
कभी क्रूरता के दंश को शौर्य से झेलकर भी उछलती-जीती रही जिंदगी.
कभी मानव-धर्म को श्रेष्ठ मानकर बढ़ती रही जिंदगी,
कभी नैतिक मूल्यों में आस्था गंवाकर भी हिलती रही जिंदगी.
कभी सुविधाओं से घिरी रहकर सिसकती रही जिंदगी,
कभी अभावों के गर्त में गिरकर भी मुस्काती रही जिंदगी.
कभी अनुकूल परिस्थितियों में आहें भरती रही जिंदगी,
कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी राहें ढूंढती रही जिंदगी.
कभी कर्मठता के क्रियाकलापों से कूजती रही जिंदगी,
कभी अकर्मण्यता के पाश में भी फंसती रही जिंदगी.
कभी सुख के सान्निध्य में सरकती रही जिंदगी,
कभी दुःख के दारुण दंश से भी बिछलती रही जिंदगी.
कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी,
अक्सर रोशनी को साथ लेकर सबको राह दिखाती रही जिंदगी.
लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
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जिंदगी का एक रूप यह भी-
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