ग़ज़ल
नफरतों के इस दौर में प्यार की उम्मीद मत कर,
हर किसी से सच के स्वीकार की उम्मीद मत कर।
आँखों के इशारे सच्चे नहीं झूठे होते हैं आजकल,
नजरों के मिलने से इजहार की उम्मीद मत कर।
स्वार्थ की तराजू में तोला जाता है प्यार भी यहाँ,
आज बिना स्वार्थ के सरोकार की उम्मीद मत कर।
जिस्मों के मिलन तक रहता है प्यार दिलों में आज,
किसी से इस बात की इनकार की उम्मीद मत कर।
भावनाओं को सीढ़ी बनाकर खेला जाता है खेल,
अपने बीच तकिये के दीवार की उम्मीद मत कर।
कली को फूल बनाकर उड़ जाता है भंवरा हमेशा,
उस हवाओं के रुख पर सवार की उम्मीद मत कर।
“सुलक्षणा” करती रहती है आगाह इस ज़माने को,
वो दिन गए अब नजर कटार की उम्मीद मत कर।
— डॉ सुलक्षणा