माताजी का जन्मदिन
प्रिय सुदर्शन भाई,
नमस्कार,
आपने 15 अगस्त को प्रकाशित हमारे ब्लॉग ‘बाल गीत: आपके-हमारे- 1’ की प्रतिक्रिया में लिखा था-
”आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. पवित्र त्यौहार रक्षा बंधन, स्वतंत्र दिवस के संग संग प्रिय मेहुल को जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं. इन सभी खुशियों के साथ आज हम अपनी माताजी का जन्म दिवस भी मना रहे हैं.”
प्रिय भाई, माताजी के जन्मदिन के पावन अवसर पर माताजी को और आपको सपरिवार हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाएं.
”जीवन की सतरंगी सतह पर,
राजरानी खन्ना का उदय हुआ,
अपना राज करने को इसी दिन,
आजादी का उदय हुआ.”
अपने जन्मदिन पर स्वतंत्रता दिवस का सपना साकार करने वाली माताजी राजरानी खन्ना को हमारा चरण-स्पर्श और हार्दिक नमन.
परिवार को सुसंस्कारों से सींचने के लिए माताजी राजरानी खन्ना को हमारा चरण-स्पर्श और हार्दिक नमन.
प्रिय सुदर्शन भाई, अपने परिवार को सुसंस्कारों से सींचने का ही सुपरिणाम है कि आपकी भाषा-शैली में कौशल और निखार का प्रादुर्भाव हुआ. अपना ब्लॉग के छोटे-से सफर में आप पर हमारे अनेक ब्लॉग्स आए, जिनमें से कुछ हैं-
विशेषज्ञ सुदर्शन भाई: जन्मदिन की बधाई,
सुदर्शन भाई: सालगिरह की बधाई,
निराले विषयों के निराले युवा लेखक,
मनोविज्ञान के चतुर चितेरे: सुदर्शन खन्ना,
संयोग पर संयोग-5,
चमकता सितारा (लघुकथा)
इसके अतिरिक्त फिर सदाबहार काव्यालय का शुभारम्भ आपकी ही कविता दरख्त से हुआ. इसके बाद इस कड़ी में अनेक एपीसोड जुड़ते रहे.
दिलखुश जुगलबंदी के प्रणेता तो आप ही है और इसके अनेक एपीसोड आपकी कलम से सुशोभित हुए.’
‘बाल गीत: आपके-हमारे’ में ये ले ‘मेरी बर्फी’ और ‘‘क्षणिकाएं: आपकी-हमारी’ में ‘होली प्रेम की बोली है’ अपनी सफलता का झंडा गाड़ रही हैं.
सुदर्शन भाई के ब्लॉग लिखकर गूगल सर्च करने से ये सभी ब्लॉग आ जाएंगे. इसके अलावा किसी भी ब्लॉग के शीर्षक के साथ लीला तिवानी का ब्लॉग लिखकर गूगल सर्च करने से भी वह ब्लॉग आ जाएगा.
इसके अतिरिक्त आपकी प्रतिक्रियाएं भी किसी ब्लॉग से कम नहीं होती हैं. आपकी अनेक प्रतिक्रियाएं हमारे ब्लॉग्स का हिस्सा बन गई हैं.
आपने इस थोड़े-से समय में लगभग 240 ब्लॉग्स लिखे हैं, जिनकी ख़ास विशेषता है आपकी अपनी निराली शैली. इसकी विशेषता यह है कि आप बात कहां से शुरु करते हैं, उसमें न जाने कितने ट्विस्ट आते हैं और हर मोड़ पर होता है एक अनोखा संदेश. अंत में रचना के चरमोत्कर्ष पर आपके सामान्य नायक-नायिकाएं स्वयं तो अपनी श्रेष्ठता का परचम लहराकर चले जाते हैं, लेकिन पाठकों को स्तब्ध कर उनके दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं.
जितने खूबसूरत और अद्भुत आपके ब्लॉग्स होते हैं, उतनी ही खूबसूरत और अद्भुत आपके पाठकों की प्रतिक्रियाएं होती हैं.
आपने महज औपचारिकता वश नहीं, बल्कि माता-पिता से मिले सुसंस्कारों के कारण दिल से सब छोटों-बड़ों को ‘सादर प्रणाम’ लिखना शुरु किया, फिर जब गौरव भाई ने आपसे बहुत छोटा होने के कारण सादर प्रणाम न लिखने का अनुरोध किया, तो आपने उनका अनुरोध स्वीकार कर उन्हें कृतार्थ किया.
हम पहले भी कई बार लिख चुके हैं, कि सम्मान से सम्मान मिलता है. जब आपको हमारे सबसे वरिष्ठ पाठक-कामेंटेटर गुरमैल भाई की आयु का पता चला, तो आपने उन्हें आदरणीय दादा कहना शुरु किया. तदनुसार चंचल जी ने आपको आदरणीय सुदर्शन दादा की उपाधि से विभूषित किया.
उपाधियां और उपलब्धियां तो आपकी झोली में अनगिनत हैं. आपने उन सबका श्रेय माता-पिता को दिया है, जो कि स्वाभाविक भी है. माता-पिता के दिए सुसंस्कार ही तो हमारी विचारधारा को प्रभावित करते हैं.
आपने अपने परिचय में लिखा है-
‘1962 में दिल्ली स्थानांतरित होने पर मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा पिताजी के साथ कार्य में जुड़ गया । कार्य की प्रकृति के कारण अनगिनत विद्वतजनों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला । पिताजी ने कार्य में पारंगत होने के लिए कड़ाई से सिखाया जिसके लिए मैं आज भी नत-मस्तक हूँ । विद्वानों की पिताजी के साथ चर्चा होने से वैसी ही विचारधारा बनी । नवभारत टाइम्स में अनेक प्रबुद्धजनों के ब्लाॅग्स पढ़ता हूँ जिनसे प्रेरित होकर मैंने भी ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक ब्लाॅग आरंभ कर कुछ लिखने का विचार बनाया है । ‘
इसी कड़ाई और अनुशासन के दर्शन आपके ब्लॉग्स और प्रतिक्रियाओं में जगह-जगह पर दिखते हैं. कड़ाई और अनुशासन के कारण ही आपका सुलेख मनमोहक और दिलकश है. केवल आपका ही क्यों, माताजी का सुलेख भी अत्यंत आकर्षक है और शैली अति प्रभावकारी और धारदार. आप पर जब हमारा ब्लॉग ‘संयोग से संयोग-5’ आया तो माताजी ने उस पर प्रतिक्रिया देने में 3-4 दिन लगा दिए. वे 3-4 दिनों तक अपनी शैली को धार देती रहीं और फिर जो प्रतिक्रिया उभरकर आई, वह ‘चमकता सितारा (लघुकथा)’ में देखी जा सकती है. इस उम्र में भी उनका सुलेख खूबसूरत और अद्भुत लगा.
हम यहां किसी की भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं, क्योंकि आपके ब्लॉग पर आने वाली हर प्रतिक्रिया लाजवाब होती है. हम ब्लॉग की साइट दे रहे हैं, प्रतिक्रियाएं इच्छुक पाठक स्वयं ही देख लेंगे. पाठक आपका केवल 15 अगस्त पर आया ब्लॉग ‘मेरा तिरंगा’ और उसकी प्रतिक्रियाएं ही देख लेंगे, तो उन्हें आपकी संवेदनाओं के उफनते समंदर का अंदाजा हो जाएगा.
चलते-चलते हम आपको बताते चलें, कि आज हमें पहली बार पता चला कि एक कालजयी महाकाव्य “सुदर्शन रामायण” भी रचित है, जो आचार्यश्री सुदर्शनजी महाराज के द्वारा रचा गया है.
एक बार फिर माताजी के जन्मदिन 15 अगस्त की बहुत-बहुत बधाई के साथ-
”जन्मदिवस की बधाई हो,
खुशियों की शहनाई हो,
उठे नज़र जिस ओर, जिधर भी,
मस्त बहारें छाई हों.”
लीला तिवानी
सुदर्शन भाई का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/sudershan-navyug/
जय विजय में सुदर्शन भाई का ब्लॉग-
https://jayvijay.co/author/sudarshankhanna/
प्रिय सुदर्शन भाई, जन्मदिन 15 अगस्त पर उस मां को नमन जिसने आपको नौ महीने कुक्षि में पाल कर सुसंस्कार घुट्टी में दिए. उन्हीं सुसंस्कारों की खेती अब लहलहा रही है. उन्हीं सुसंस्कारों ने आपको कलम का बाजीगर बना दिया, आपकी शैली को पैनापन देकर धारदार बना दिया. आपको सपरिवार माताजी के जन्मदिन की हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाएं.