कहानी

अधूरे ख्वाब

दिल में यादों के नश्तर चुभोती वही उदास स्याह रात। जहां सिवाय तन्हाई के कुछ नहीं बचा था। टेप रिकॉर्डर पर धीमी आवाज में बजता गाना” चार दिना दा प्यार ओ रब्बा बड़ी लंबी जुदाई…….”, नम आंखें और धुंधली पड़ती तस्वीर। यह कोई आज की बात नहीं थी। यह किस्सा तो पिछले 15 वर्षों से अनवरत चला आ रहा था। दिन तो रोजमर्रा के कामों में, नौकरी और पारिवारिक कर्तव्यों की पूर्ति में निकल जाता ।आसपास की चहल-पहल ,दुनिया की भीड़ भाड़ और व्यस्तता में अपने बारे में सोचने तक का वक्त न मिलता। लेकिन रात, वह तो अपने आप में सूने पन की कहानी बयान करती ।उससे आखिर कैसे बचा जा सकता था? सच तो यह था कि चाहे खुद को कितना ही व्यस्त न कर ले दिल के किसी कोने में तन्हाई भी भरपूर पोषित होती आई थी। इतने वर्षों के बाद भी भावना खुद को अनुराग की यादों से अलग नहीं कर पाई थी।
जाने कितने ख्वाब देखे थे दोनों ने मिलकर अपनी एक छोटी मगर खुशहाल दुनिया को लेकर। जहां गम की परछाई भी न पड़े ।सब कुछ ठीक-ठाक चल भी रहा था। विवाह के एक वर्ष के अंदर ही उन दोनों के प्रेम की निशानी “आरव “आ गया।मानो परिवार में खुशियों की बहार आ गई ।लेकिन यह खुशियां ज्यादा दिन तक टिकने वाली नहीं थी। नियति ने तो कुछ और ही सोच रखा था ।तीज का दिन था। ऑफिस के ओर से महिला स्टाफ को विशेष अवकाश दिया गया था। इसलिए भावना काम पर नहीं गई थी वह घर के कामों को जल्द से जल्द निपटाने में जुटी हुई थी । शाम की पूजा की तैयारी जो करनी थी। आस पड़ोस की महिलाएं आने वाली थी “फुलहरा” रखकर विशेष पूजन और रात्रि जागरण का कार्यक्रम था। लेकिन जाने क्यों बार-बार उसका मन आशंकित हो रहा था किसी अनिष्ट की आशंका से। अनुराग के लौटने का वक्त हो चला था लेकिन वह नहीं आया था “अब तक क्यों नहीं आए? अब तक तो आ जाना चाहिए था।” इसी उधेड़बुन में लगी थी और आरव को भी सुला रही थी।
तभी दरवाजे की घंटी बजी दौड़ कर दरवाजा खुला तो सामने एंबुलेंस खड़ी थी दिल की धड़कन तेज होने लगी थी नजर पड़ी तो दिखा अनुराग का रक्त रंजित बेजान शरीर। खामोश ,स्तब्ध,निष्प्राण सी होकर गिर पड़ी ।होश आया तो खुद को कमरे में पाया ।सांत्वना देने और दुख व्यक्त करने वालों का तांता लगा था। सभी हतप्रभ थे इस अप्रत्याशित घटना से ।क्या हो गया था अचानक यह सब? किसी नेता के बिगड़ैल बेटे और उसके आवारा दोस्तों की बचकानी कार रेस की चपेट में आ गई थी अनुराग की बाइक। घिसटता चला गया था दूर तक ।राह चलते लोगों ने भी पुलिस के चक्कर में पड़ने के डर से कोई सहायता नहीं की थी। तड़पते हुए दम तोड़ दिया था उसने। किसी ने बाद में पुलिस को फोन किया ।उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बिखर चुके थे सभी ख्वाब ।खुशियां मातम में बदल चुकी थी।
कैसे जी पाएगी अनुराग के बिना? मन में विचार आया कि अपनी भी जीवन लीला को समाप्त कर दे। लेकिन फिर आरव और बूढ़े सास ससुर का ध्यान आया। आखिर उन्हें कौन देखेगा? अनुराग जो जिम्मेदारी उसके ऊपर छोड़ गए हैं उनसे वह कैसे मुंह मोड़ सकती है? इसलिए जीना तो पड़ेगा ही। अपने लिए न सही इन लोगों के लिए ।
अंतर्मन की हिम्मत जुटाई और लग गई कर्तव्य के निर्वहन में ।अनुराग को गए 5 वर्ष हो चुके थे। इतने वर्षों में उसने एक बार भी अपने बारे में नहीं सोचा ।उसकी यादों को दिल में बसाए, अधूरे ख्वाबों को किसी सूखे गुलाब की तरह मन के किसी कोने में द बाए जी रही थी।
 आज ऑफिस में काफी हलचल थी ।कंपनी के नए बॉस आने वाले थे। सभी उनके स्वागत की तैयारी और काम में मशगूल थे। भावना भी लगी थी अपनी फाइलें दुरुस्त करने में। कहीं कोई कमी न रह जाए। अचानक चहल-पहल बढ़ गई ।सभी गुलदस्ते और हार लिए खड़े थे। तभी नए बॉस “अखिल “ने प्रवेश किया ।लेकिन यह क्या ऊंची कद काठी, गेहूंआ रंग ,गठीला बदन ,मुस्कुराने का अंदाज हूबहू अनुराग जैसा। देखकर जड़वत खड़ी रह गई थी वह ।चलचित्र की भांति अतीत के सारे दृश्य जैसे आंखों के सामने से गुजर गए ।सभी अखिल को पदभार ग्रहण करने की बधाई दे रहे थे लेकिन चाह कर भी वह आगे नहीं बढ़ पा रही थी। जिन ख्वाबों को वह जख्म की तरह दिल में दबाए हुए थी, वही अधूरे ख्वाब अब उसे नासूर से लग रहे थे, प्रकृति के इस क्रूर मजाक को देखकर।
कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

Address: 16/1498,'chandranarayanam' Behind Pawar Gas Godown, Adarsh Nagar, Bara ,Rewa (M.P.) Pin number: 486001 Mobile number: 9893956115 E mail address: [email protected]