मेरी कविता
राजनेताओं की चाटुकारिता नहीं
मेरी कविता
प्रेमिका का चाँद-तारों वाला श्रृंगार नहीं
मेरी कविता
धर्म-जाति, मजहब का भेद नहीं
मेरी कविता
स्वार्थ की चार दिवारी वाली कैद नहीं
मेरी कविता
हास्य के नाम पर फूहड़ता नहीं
मेरी कविता
मंचीय लिफाफों की मोहताज नहीं
मेरी कविता
कोई सुर, ताल, लय गीत नहीं
मेरी कविता
दिख जाते जहाँ कहीं वेवश बहते आँसू
वहीं बन जाती मेरी कविता
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से जन-जन लाचार
सड़ा-गला सिस्टम बेकार
नित-नित होते बलात्कार
शासन के अत्याचार
मानवता की होती हार
मंहगाई की पड़ती मार
मेरी कविता है तलवार |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा