कविता

जूते की बात

जूते ले लो जोर से चिल्लाता बाजार में जा रहा था,
अरे कोई भी ब्रांड चाहियें
मुझे बताओ
नेताओ, कवियों पर फेकने वाला सस्ता जूता भी है।
आप का नाम बडे़ अखबार से वामपंथ के दफ्तर मुफ्त में,
आप पर लेख छप सकता है
जूते की बात सबसे अलग है
साहब ले लो
पहना पैरो में जाता है
मगर सिर पर भी काम आता है।
वो जबजस्त भाषण देकर जूते बेच रहा है
कोई खरीदने वाला ना दिखा
मैं ठेले पर रूक गया
“अरे कोई सस्ता जूता दिखाओ
हल्का हो।
वो बोला” साहब किसी पर फेकने है।
हां
वोह ये लो पार्लियामेंट से
कवि सम्मेलन तक चलेगा
मार हल्का मगर बहुत हो हल्ला होगा,
बहुत खुश हुआ
चलो किसी कार्यक्रम में खुद पर प्रयोग होगा।
मेरा पडो़सी सुबह दौड़ते हुये मेरे पास आया,
अखबार दिखाकर कहा” सुना कवि सम्मेलन में जूते चलने लगे।
मैं उठकर बैठ गया
“अरे नही हो सकता है
मगर समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार पढकर नकली दुखी हुआ।
पडो़सी हमेशा की तरह बहुत खुश हो रहा था
मेरा पडो़सी सुबह दौड़ते हुये मेरे पास आया,
अखबार दिखाकर कहा” सुना कवि सम्मेलन में जूते चलने लगे।
मैं उठकर बैठ गया
“अरे नही हो सकता है
मगर समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार पढकर नकली दुखी हुआ।
पडो़सी हमेशा की तरह बहुत खुश हो रहा था
हम भूखे लेखक भी जूते की महिमा जानते है,
काश हम पर कोई जूते बरसाता वो भी जोडा़
वाह अगले दिन अखबार के पन्नो पर चर्चा होने लगता और शोसल मार्ग पर शोहरत यू बटोर लाता।
मगर कोई सुनता नही
अकेले की पीढा़ नही है, बहुत सारे लोगो की मंशा बनती है।
जूता खाये कवि सिंह की तुलना करके क्रांतिकारी कवि बना दिये जायेगे।
वह हर मंच से जूतो की व्याख्या करता फिरेगा,
मिडिया पर भी जूतो की टीआरपी बढ़ती जाती है,
नेता की अलग बात है कुछ लोग कहते कि जनता की  गिरती नजर से बचने के लिये जूता खाये लेते है।
पूरा मिडिया दिनभर डिबेट में दिखाती रहती है।
जूते का सोच रहे थे कि
बीबी जोर से चिल्लाती है
“अरे जूते को सीने से लगाकर क्यो सो रहे हो।
— अभिषेक राज शर्मा 

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल [email protected] [email protected]