पर्यावरण

दुनियाभर में तेजी से पिघलते ग्लेशियर एक भयंकर आपदा की आहट

समय-समय पर समाचार पत्रों में दुनियाभर में हो रहे विभिन्न तरह के प्रदूषणों की वजह से वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ने की वजह से पहाड़ों के उच्च शिखरों पर मनुष्य प्रजाति के लिए मीठे पानी के अविरल और बड़े श्रोत, लाखों सालों से जमे हुए ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के समाचार आते ही रहते हैं, मसलन भूवैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले दिनों एक माह में ग्रीनलैंड में 197अरब टन बर्फ पिघल गई जबकि उत्तरी ध्रुव में एक ही दिन में 10 अरब टन बर्फ पिघल गई। अब एक बहुत ही दुःखद और विचलित करने वाला समाचार चिली के उच्च पर्वत शिखरों पर जमें ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के आ रहे हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद मीठे पानी के सबसे बड़े श्रोत चिली के पर्वतों पर जमें ग्लेशियर हैं। ‘विश्व संसाधन संस्थान ‘के अनुसार चिली के इन पर्वतों पर दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के 80 प्रतिशत ग्लेशियर हैं, जो मानवजनित लोभ की वजह से तेजी से पिघलने को अभिषप्त हैं। ज्ञातव्य है चिली के इन ग्लेशियरों के नीचे छिपे दुनिया के कुल तांबे की जरूरत का एक तिहाई भाग निकाला जाता है, जो चिली की कुल अर्थव्यवस्था का 10प्रतिशत है। इसलिए इन पहाड़ियों पर होने वाली मानव गतिविधियां, जैसे सड़क निर्माण, मशीनों के अत्यधिक शोर, प्रदूषण और खनन कार्यों से उठने वाली धूल-गुबार से उक्त ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
दुनियाभर में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण भयंकर प्रदूषण के अतिरिक्त दुनिया भर में वनों का तेजी से हो रहा भयंकर विनाश और संहार है। वैज्ञानिक आकलन के अनुसार अमीर देशों जैसे अमेरिका और यूरोप के लोगों द्वारा इस धरती को 40 प्रतिशत तक ऑक्सीजन आपूर्ति करने वाले अमेजन के जंगलों की बेशकीमती और मंहगी लकड़ी को खरीदना, वैश्विक आबादी बढ़ने के साथ उसकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अधिक से अधिक माँस की माँग ने वनों को शिघ्रातिशीघ्र सफाया कर उनमें पशुपालन फॉर्म खोलकर माँस का अधिकाधिक उत्पादन करना, अमेरिका और चिली आदि जैसे देशों का ‘ वैश्विक पर्यावरण के लिए अत्यन्त घातक प्रदूषण के कारणों की उपेक्षा कर अपने देश के आर्थिक विकास को प्राथमिकता ‘देना, बढ़ते शहरीकरण व कथित आधुनिक विकास के लिए तेजी से चौड़ी-चौड़ी सड़कों को बनाने के लिए जंगलों का तेजी से विध्वंस किया जाना आदि बहुत से ऐसे कारण हैं, जिनसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन हो रहा है और दुनियाभर के लाखों साल से जमें मीठे पानी के सबसे बड़े श्रोत ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। आज की वैश्विक भलाई इसी में है कि अमेरिका और चिली जैसे देशों को अपने राष्ट्रीय स्वार्थ से ऊपर उठकर वैश्विक भलाई की सोच लानी ही चाहिए।
वैज्ञानिकों के अनुसार कथित विकास, शहरीकरण और सड़कों के लिए भारत जैसे देश में प्रतिवर्ष 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफर के बराबर और दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल के बराबर (भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के क्षेत्रफल (22720 वर्ग किलोमीटर के बराबर), वनों का विध्वंस हो रहा है। कितने दुःख, अफ़सोस और आत्मग्लानि का विषय है कि संपूर्ण मानव प्रजाति के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन के मुख्य और एकमात्र श्रोत, जिसका फिलहाल कोई विकल्प नहीं है, पेड़, वृक्ष और जंगलों को मनुष्य प्रजाति तेजी से उजाड़ रही है और अपने को सर्वाधिक सभ्य और विकसित देश मानने वाला ‘अमेरिका ‘जैसा देश इस वैश्विक जिम्मेदारी से सीधे पल्ला झाड़ ले रहा है, जबकि इस दुनिया में वनों की एक सीमा से अधिक विनाश के बाद निकट भविष्य में ही एक न एक दिन ऐसा जरूर आने वाला है, जब ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी से मनुष्यप्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल के जीवधारियों का दम घुटने लगेगा, तब अमेरिका जैसा कथित विकसित राष्ट्र भी अपने देशवासियों को इस वैश्विक आपदा से बचाने में निश्चित रूप से सक्षम नहीं हो पायेगा ?
इसलिए इस धरती के सभी जीवों में स्वयं कथित सबसे अधिक सभ्य और विकसित प्राणी (मनुष्य प्रजाति) को इस धरती के सभी जीवों का प्राणाधार वायु (ऑक्सीजन) के मुख्य श्रोत पेड़, पौधों, दरख्तों और जंगलों को हर हाल में बचाना ही होगा क्योंकि, पेड़ हैं तो हम सभी जीव इस धरती पर हैं, पेड़-पौधों के बिना हमारा इस धरती पर अस्तित्व ही संभव नहीं है, इसलिए इस धरती के सभी देशों को आपसी राजनैतिक मतभेद भुलाकर, अपने राष्ट्रीय स्वार्थ से ऊपर उठकर सामूहिक रूप से संपूर्ण पृथ्वी के सभी जीवों के बहुमूल्य जीवन को बचाने के लिए सामूहिक सद् प्रयास कर वनों का विनाश और दोहन रोकना ही होगा। इसके अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं है, इस धरती पर समस्त प्राणिमात्र के बचने का सिर्फ यही एक ही रास्ता ही बचा है। अतः हे दुनिया के समस्त मानवों ! सभी मिल-जुलकर बगैर किसी राष्ट्रीय और आर्थिक स्वार्थ व मतभेद के, इस ब्रह्माण्ड में जीवन के सांसों के स्पंदन से युक्त अपनी ‘इकलौती शस्य श्यामला धरती ‘को बचाओ।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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