बेटी है आकाश
बेटी ने यह जग रचा,बेटी ने संसार ।
बेटी हम सब के लिये,ईश्वर का उपहार ।।
बेटी है नेहिल नगर,बेटी प्यारा गांव ।
बेटी उजला प्रांगण,बेटी शीतल छांव ।
बेटी तो कोमल कली, बेटी तो तलवार !
बेटी सचमुच धैर्य है, बेटी है अंगार !!
बेटी है संवेदना,बेटी है आवेश !
बेटी तो है लौह सम,बेटी भावावेश !!
बेटी कर्मठता लिये,रचे नवल अध्याय !
बेटी चोखे सार का,है हरदम अभिप्राय !!
बेटी में करुणा बसी,बेटी में है धर्म !
बेटी नित मां-बाप प्रति,करती पूरा कर्म !!
बेटी तो ममतामयी,पर वीरों की वीर !
हर लेती परिवार की,हो कैसी भी पीर !!
बेटी है मानो धरा,बेटी है आकाश !
बेटी के गुण को “शरद”,समझे यह युग काश !!
बेटी सेवा,श्रम लिये,करती है उपकार !
बेटी से ही सृष्टि को,मिलता नव आकार !!
बेटी अनुसंधान है,बेटी है विज्ञान !
बेटी तो अध्यात्म है,बेटी है सत् ज्ञान !!
बेटी सूरज की किरण,बेटी है उजियार !
बेटी शीतल चांदनी,परे करे अंधियार !!
बेटी बेटे से भली,है वह खिलती धूप !
परम शक्तियां आ गयीं,ले बेटी का रूप !!
— प्रो. शरद नारायण खरे