मुक्तक/दोहा

बेटी है आकाश

बेटी ने यह जग रचा,बेटी ने संसार ।
बेटी हम सब के लिये,ईश्वर का उपहार ।।

बेटी है नेहिल नगर,बेटी प्यारा गांव ।
बेटी उजला प्रांगण,बेटी शीतल छांव ।

बेटी तो कोमल कली, बेटी तो  तलवार !
बेटी सचमुच धैर्य है, बेटी है अंगार !!

बेटी है संवेदना,बेटी है आवेश !
बेटी तो है लौह सम,बेटी भावावेश !!

बेटी कर्मठता लिये,रचे नवल अध्याय !
बेटी चोखे सार का,है हरदम अभिप्राय !!

बेटी में करुणा बसी,बेटी में है धर्म !
बेटी नित मां-बाप प्रति,करती पूरा कर्म !!

बेटी तो ममतामयी,पर वीरों की वीर !
हर लेती परिवार की,हो कैसी भी पीर !!

बेटी है मानो धरा,बेटी है आकाश !
बेटी के गुण को “शरद”,समझे यह युग काश !!

बेटी सेवा,श्रम लिये,करती है उपकार !
बेटी से ही सृष्टि को,मिलता नव आकार !!

बेटी अनुसंधान है,बेटी है विज्ञान !
बेटी तो अध्यात्म है,बेटी है सत् ज्ञान !!

बेटी सूरज की किरण,बेटी है उजियार !
बेटी  शीतल चांदनी,परे करे अंधियार !!

बेटी बेटे से भली,है वह खिलती धूप !
परम शक्तियां आ गयीं,ले बेटी का रूप !!

— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]