माइक्रोप्लास्टिक के दुष्प्रभाव
वैज्ञानिक जगत में ‘माइक्रोप्लास्टिक ‘यह एक नया नाम है , माइक्रोप्लास्टिक ,प्लास्टिक के वे कण हैं , जो बहुत ही सूक्ष्म और इतने हल्के हैं , जो हवा के साथ उड़कर वायुमंडल के द्वारा इस दुनिया में सर्वत्र पहुँच गये हैं ,ऊँचे पहाड़ों के शिखरों पर जमें ग्लेशियरों में ,वर्षा के पानी में मिलकर हमारी नदियों ,कुँओं ,भूगर्भीय जल ,समुद्र की अतल गहराइयों तक ,हमारे खाद्य पदार्थों ,बोतल बन्द पानी और दूध और तो और हमारे साँसों के द्वारा शरीर के अंदरूनी हिस्सों मसलन फेफड़ों ,रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के न्यूरॉन कोशिकाओं तक में आसानी से प्रवेश कर उसमें अपना स्थाई अड्डा बना चुके हैं ।
हाल ही में वैज्ञानिकों के नवीनतम शोधों के अनुसार मानव शरीर में उसके पहने सिंथेटिक कपड़ों , उसके लगाए चश्में के कांटैक्ट लेंस ,उसकी कार के टायरों से निकलकर भी उसके शरीर में प्रवेश करते रहते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार मानव द्वारा सबसे शुद्ध माना जाने वाला ब्रांडेड शीलबंद बोतल की पानी तक से भी मात्र एक साल में 92 हजार तथा उसके द्वारा साँस लेने में वायुमंडल में सर्वत्र फैले वायु से भी एक लाख इक्कीस हजार माइक्रोप्लास्टिक के अतिसूक्ष्म कण उसके शरीर में जा रहे हैं ।
कितने आश्चर्यजनक बात है कि पिछली सदी में जब प्लास्टिक का अविष्कार हुआ था , तब इसे विज्ञान का एक अद्वितीय ‘वरदान ‘ माना गया ,लेकिन आज मानवप्रजाति सहित इस पृथ्वी के समस्त जैवमण्डल के लिए प्लास्टिक और माइक्रप्लास्टिक अपने प्रदूषण और अपने जीवन की ‘अमरता ‘जैसे हानिकारक गुणों के कारण समस्त मानव प्रजाति के लिए एक बहुत बड़ा ‘सिरदर्द ‘ साबित हो रहा है ।
प्लास्टिक प्रदूषण से मनुष्यप्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल को कितना नुकसान हो रहा है ? ,इस पर अभी पर्याप्त वैज्ञानिक शोध नहीं हुआ है ,फिर भी आजकल होने वाले अधिकतर ‘कैंसर ‘ जैसे रोगों की अधिकता संभवतया माइक्रोप्लास्टिक के अति सूक्ष्म कणों के मानव के आंतरिक अंगों और रक्त वाहिकाओं में बनाए घुसपैठ और उनके जटिल रासायनिक गुणों की वजह से हो रहा हो ,तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । यह तो अगले कुछ दशकों में प्लास्टिक प्रदूषण पर गहन वैज्ञानिक शोधों से ही पता चल पायेगा ,परन्तु इतना तो निश्चित है कि प्लास्टिक का अंधाधुंध प्रयोग मानव जीवन के लिए कतई निरापद व स्वास्थ्यवर्धक नहीं है ,इसलिए प्लास्टिक का प्रयोग हमें जितना संभव हो सके कम से कम करना ही चाहिए ।
— निर्मल कुमार शर्मा