ग़ज़ल
बहुत जी चुका हूँ अब मुझे मर जाने दे
खुशबू की तरह हवा में बिखर जाने दे
सिवा रेत के कुछ भी न मिला साहिल पे
अब कश्ती को समंदर में उतर जाने दे
मेरे बारे में कही तेरी सारी बातों का
है मेरे पास भी जवाब मगर जाने दे
जो मेरी याद फूल है तो खिलाए रखना
और ज़ख़्म है तो फिर इसे भर जाने दे
रोज़-ए-हश्र का ख्याल कर ले थोड़ा सा
लोग क्या कहेंगे इसकी फिकर जाने दे
— भरत मल्होत्रा