गज़ल
प्यार का दीपक जलाने दीजिए
फैलती नफ़रत मिटाने दीजिए ।
खो गया मन अनमना मेरा कहीं
मुझको फिर से खिलखिलाने दीजिए ।
ये सुहाना मौसम-ए-बरसात का
बिजलियों को जगमगाने दीजिए ।
रागनी को फैल जाने दीजिए
दिल की धड़कन को बढाने दीजिए ।
है अगर विश्वास फिर तुम साथ दो
हमको अपने कह बुलाने दीजिए|
छिप नही सकती ‘मैत्री”’भी बात यूँ
नित ही मन के फसाने दीजिए.
— रेखा मोहन