कविता

वर्तमान में जी लें हम

बीता वक्त न लौट कर आता,
इस सच्चाई को स्वीकार करें हम।
बीती बातों पर मिट्टी डालें,
वर्तमान में जी लें हम।
आज मिला है जो अपना लें,
व्यर्थ में क्यों संताप करें?
सुख दुख तो आते जाते हैं,
फिर क्यों बैठ विलाप करें?
वक्त के साथ नहीं चलता जो,
वह सदा ही पछताता है।
जो वक्त के साथ है चलता,
 वह ही मंजिल को पाता है।
आने वाले कल में क्या होगा?
यह भी तो कोई न जाने है।
फिर भविष्य की चिंता में,
क्यों वर्तमान को बिगाड़े हम।
सुदृढ़ भविष्य को ध्यान में रखकर,
वर्तमान को आओ संवारे  हम।
आगे पीछे की छोड़ की चिंता,
आज के दौर में ही जी लें हम।
  कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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