विधाता छंद (मुक्तक)
दरश की लालसा मोहन के जब तक साँस बाक़ी है |
पियूँ नित नाम रस प्याला मिलन की प्यास बाक़ी है |
तुम्हारी मोहनी सूरत बसी है आन नैनों में-
मुरलिया आ सुनाओगे यही विश्वास बाक़ी है |
२
बजाकर प्रेम की मुरली सकल जग प्रेममय कर दो |
पराक्रम ,तेज , खुशहाली समूचे विश्व में भर दो |
सुवासित हो प्रकृति सारी खिले मुस्कान अधरों पर –
करूँ नित प्रार्थना योगेश गिरधारी यही वर दो |
३
किया श्रृंगार मनभावन तुम्हे मोहन रिझाने को |
निधी वन में मुरारी रास लीला फिर रचाने को|
सुनो योगेश करुणा कर न तरसाओ दरश दो प्रभु-
लगन तुम से लगा मोहन खड़ी तन-मन रंगाने को |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’