कविता

यात्रा

रात की सूनी पगडंडी पर
मैं और मेरी तनहाई
निकल पड़ते हैं अक्सर अनंत यात्रा पर
बहुरंगी सपनों के पीछे, नंगे पाँव।
चाँद गवाह होता है इस सफ़र का
और हमसफ़र अनगिनत जुगनू।
मुसलसल सफ़र के बीच
अचानक! सामने बहने लगती है एक नदी
मैं तैराकी से अनजान
डूबते-उभरते पहुँचती हूँ उस पार।
चार कदम आगे बढ़ती है यात्रा
तभी, पगडंडी पर उग आते हैं जहरीले काँटे
लौट जाती हूँ हर बार
अपने प्रारब्ध को कोस कर।
कौन बिछाता है जाल काँटों का?
क्या है, इस तिलस्मी नदी का रहस्य?
और आखिर में थकान मिटाकर
तैयार करती हूँ खुद को
अगली यात्रा के लिए…!
— यशोदा कुमारी

यशोदा कुमारी

सहायक शिक्षिका (बी०एल०डी० उच्च विद्यालय, रानीगंज) पता: ग्राम- लालमोहन नगर, पो०- पहुँसरा, थाना- रानीगंज, अररिया, बिहार- 854312 मो०- 8340403703 ईमेल- [email protected]