फिर सदाबहार काव्यालय- 35
1.लौट कर आजा…
झरोखे से झाँका
मासूम बचपन दिखा
मन किया गले लगा लूं
बनूं शासक उस जहान का जहाँ
ना कोई टेंशन, ना कोई बंधन
हो महज ज्ञानार्जन, मनोरंजन और
खुशी का संचयन…
प्यार,दुलार और लोरी से
परोसा हुआ बहुव्यंजनीय बचपन
बहन से लड़ाई ,भाई को फ़साई
मानो विशेषज्ञ सभी विषयों का
क्या,क्यों,कैसे रगों में दौड़े
मानो उसैन बोल्ट सवालों का
इंद्र धनुष याद आने पर
तितलियों के पंखों में टटोलना
खेत की रखवाली के बहाने
मटर की फलियां तोड़ना
दोस्तों से झगड़ा करना
चोट लगने पर, माँ से छुपाना
बुजुर्गों को चिढ़ाना और
पापा के सामने शरीफ बनना
त्योहारों में सभी के घर जाना
नए कपड़ों में उछल कूद मचाना
लौट कर आजा बीता बचपन
तरस रहा हूँ, तड़प रहा हूँ…
2.ऐ आँख!
तू है तो जहान में उजाला है
तेरे बिन दुनियां गवारा न है
हर लम्हों का चश्मदीद गवाह है
तू है तो पल-पल से वाकिब मैं हूँ।।
चाँदनी सी ठंडक तेरे वजूद से है
अच्छे कामों मे बरक़त वज़ूद से है
तू है तो जश्न ए किरदार मेरा
वरना मैं उतना असरदार कहाँ?
सरहद के माफ़िक निगरानी तेरी
एक नज़र में आते जाते का मक़सद
देख चेहरे को पढ़ता दिल के सारे राज
तू है तो जिंदगी की एक नई अंदाज़।।
तेरे होने से ग़रीबी-अमीरी देखा
भूख-प्यास का हक़ीकत समझा
दाने दाने पर खाने वाले का नाम देखा
ए आँख! कुदरत का दस्तूर समझा।।
साहित्यिक परिचय-
ज़हीर अली सिद्दीक़ी
ईमेल- [email protected]
जन्म : 15 जुलाई, 1992 -भारत के उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के जोगीबारी नामक गांव में हुआ.
शिक्षा-हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट-नवोदय विद्यालय बसंतपुर सिद्धार्थनगर,उत्तर प्रदेश,भारत.
स्नातक एवं परास्नातक- किरोड़ीमल महाविद्यालय,दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली,भारत.
रचनाएँ-साहित्य कुञ्ज,साहित्य सुधा,साहित्य मंजरी ,मेरे अल्फ़ाज़ (अमर उजाला) ,जय विजय आदि प्रकाशकों द्वारा विभिन्नआलेख(सामाजिक, व्यंग्य) ,कहानी, नज़्म, हाइकु, कविता प्रकाशित.
सम्प्रति- रसायन तंत्र ज्ञान संस्थान से पी-एच.डी. कार्य मे कार्यरत.
जनाब ज़हीर जी, आपकी दोनों कविताएं लाजवाब हैं. अपना ब्लॉग और जय विजय में प्रकाशित होने के लिए बहुत-बहुत बधाई. आपने इनायत करके सदाबहार काव्यालय- 2 के लिए अपनी कविताएं हमें प्रेषित कीं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. इसकी ई.बुक बनने पर आपको इसका लिंक भेज दिया जाएगा.