कहानी – मनोरम वादियां
कल्पना और यथार्थ में बड़ा फ़ासला होता है। कल्पना की उड़ान इंसान को मायानगरी में ले जाती है। ऐसी ही घटना कौशल के साथ घटी ।
नयना की शादी बड़े धूमधाम से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर कुमार कौशल से हुई। सगाई और शादी के बीच चार महीने का अंतराल था। कौशल की पोस्टिंग झारखंड में थी । पावर प्लांट के आसपास कोई शॉपिंग मॉल नहीं, कोई मल्टीप्लेक्स सिनेमा घर नहीं । नयना के घरवाले बस लड़के की योग्यता और लड़के वालों का रहन-सहन एवं वेतन देखकर रिश्ता पक्का कर दिये ।
शादी से पहले जैसे मन चाही मुराद पूरी हुई । नयना और कौशल देर रात तक घंटों फोन पर बातचीत करते । और भला क्यों ना हो यही तो समय था प्यार के इज़हार का ,कभी भी नयना ने ये नहीं पूछा कि शादी के बाद हम लोग कैसे समय बितायेंगे खैर नियत समय पर शादी हुई और नयना दुल्हन बनकर सीधे आदिवासी इलाके के छोटे से कस्बे में आ गई। वहाँ बड़े धूमधाम से बहूभोज हुआ। एक-एक कर सभी मित्र और रिश्तेदार अपने अपने घर लौट गए । सिर्फ कौशल के मां पापा को छोड़कर । नयना की हिम्मत नहीं होती थी कि पूछे कि माँ पापा कब वापस जायेंगे।
शुरू शुरू में शाम को ऑफ़िस से आकर कौशल अपने माता-पिता और नयना को लेकर कभी डैम घूमने जाता कभी पहाड़ी मंदिर तो कभी सड़क किनारे चाट-पकौड़ी की दुकान पर।
एक दिन नयना के भईआ भाभी आये। नयना की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था । शाम में ऑफिस से कौशल घर आये। नयना कहीं बढ़िया होटल में खाने की इच्छा जाहिर की,पर ये क्या;यहाँ कोई होटल सिनेमा घर या बेहतर मॉल नहीं है यह जानकर नयना अचानक कुछ टूट सी गई। सपने में भी नहीं सोची थी कि रोज-रोज चूल्हे चौके से ही दिन की शुरुआत और अंत होगी ।
भाई भाभी को आसपास का मनोरम पहाड़ी और मंदिर घुमाफिरा कर उन्हें विदा करने से एक रात पहले नयना बोली ; “भाभी मैं ऐसे वन खंड में ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकती हूँ ।ऊपर से शादी के बाद एक दिन भी चुल्हे चौके से फुर्सत नहीं मिली है,सारे दिन सास श्वसुर की सेवा और रसोईघर क्या यही मेरी जिंदगी है ?”
कौशल की माँ परिस्थिति को समझते हुए महसूस कर नयना को कुछ दिनों के लिए मैके जाने दी। नयना के जाने के बाद कौशल बहुत उदास रहने लगे एक नन्हे मेहमान के आने की खुशी में कौशल दिल पर पत्थर रखकर नयना को मायके में ही रहने दिया।
समय पंख लगाकर भी उड़ता रहा और वो घड़ी भी आ गई जब नयना ने कूहू को जन्म दिया। कौशल अपने साथ नयना को ले जाने की इजाजत अपने सास श्वसुर से मांगा । वे लोग तो सहर्ष अपनी बेटी को विदा करने को राजी हो गये । नयना अपने पति के साथ लौट कर झारखंड के वन खंड में जाने को राजी नहीं हुई । पता नहीं नयना को सास श्वसुर के साथ रहना नहीं पसंद था या घाटी के शांति से ऊब गई थी।
नयना अपने ही शहर के एक पब्लिक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगी और लौट कर अपने पति के पास नहीं गई । हाँ कौशल कभी कभी अपनी पत्नी और बेटी से मिलने आ जाते थे। नयना ने बी एड का कोर्स किया और सरकारी स्कूल में सहायक शिक्षिका पद पर नियुक्ति भी हो गई। लंबे समय तक पति-पत्नी के बीच की दूरी कौशल के माता-पिता और नयना के माता-पिता दोनों को महसूस होने लगी । दोनों अपनी संतान के पक्ष में आये दिन फोन पर बहस करने लगे ।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर इस कदर जारी रहा कि कब तलाक की नौबत आ गई, इसका होश किसी को नहीं रहा। लेकिन नयना के पिता को यह अहसास हो गया था कि हमारी बेटी बचपना कर रही है। नयना एवं कौशल को सही राह पर लाने हेतु घ्रिताहुति की तरह बेटी को तलाक के पेपर पर दस्तखत करवाकर बुझे मन से कौशल को भेज दिये। बस एक अंतिम प्रयास, प्यार को पुनर्जीवित करने का और कोई तरीका उन्हें नज़र नहीं आ रहा था।
तलाक के पेपर देखते ही कौशल के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। वह आनन-फानन में छुट्टी लेकर नयना से मिलने पहुँचा। नयना को भी इन सब घटनाओं की जानकारी नहीं थी। आज सालों बाद नयना अपने पति और कूहू के साथ दार्जिलिंग घूमने गई।
वहाँ की मनोरम वादियाँ नयना को बहुत पसंद आई। शादी के बाद तुरंत पतरातु जैसे छोटी सी घाटी में बिताया गया हर पल याद आने लगा। एक दुसरे के बाहों के झुले में कूहू भी झुलती रही। नयना ने वापस घर आकर अपने नौकरी से त्यागपत्र देना चाहा। पर कौशल ने मना कर दिया और वह खुद ही अपना स्थानांतरण देव घर करवा लिये ।
आज वर्षों बाद एक कमरे में कूहू अपने पापा से लिपट कर सोई थी, नयना को भी यह अहसास हो गया कि माँ पापा ने जो फैसले हमारे लिए लिये थे वो सही थे। सब अपने संतान से प्यार करता है हमारे सास श्वसुर ने भी किया। मैं कितनी गलत थी होटल और सिनेमा घर की खातिर अपनी गृहस्थी में आग लगा रही थी। यह तो दैवीय संयोग है कि मुझे मनोरम वादियों में लंबे समय तक रहने का अवसर मिला था।
“कौशल आप सो रहे हैं ?”
“नहीं वर्षों पहले के सुखद अतीत में भ्रमण कर रहा हूँ। कहो क्या कहना चाहती हो ?”
“जी मैं सोच रही थी दार्जिलिंग में ठहरने घूमने फिरने में बहुत खर्च हो रहे हैं, क्यों नहीं मैं अपना स्थानांतरण पतरातू में करवा लूँ , ऐसा लगता है मानों मनोरम वादियां हमें पूकार रही है।”
— आरती राय