कविता

रात एक पहेली है

तेरे लबों पर बिखरे तबस्सुम की तरह,
रात एक पहेली है मेरी खातिर।
समझ न सकी तेरी बेरुखी की वजह,
उसमें परवाह भी शामिल है मेरी खातिर।
तुझे भुला चुकी हूं बुरे ख्वाब की तरह,
फिर भी क्यों इंतजार है तेरी खातिर।
तूने मुंह फेर लिया था गैरों की तरह,
फिर क्यों दिल तेरा तड़पता है मेरी खातिर।
तेरे दीदार की तलबगार हूं शमा की तरह,
तू भी परवाने सा जला है मेरी खातिर
— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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