कविता

अपना

बहुत दिनों की बात हुई
मैंने एक देखा था सपना
हाथों में थामे हाथ मेरा
तुमसा कोई देखा था अपना
सब कहते थे मुझसे, सपने
कभी कहाँ पूरे होते हैं?
रह जाती आस कोई बाकी
कई अरमान अधूरे होते हैं
ये दुनियादारी की बातें
जिनको दिल झुठलाता आया
ऐ काश! कि ऐसा हो जाए
दिल मुझको भरमाता आया
मैं सोच में डूबी बैठी थी
जब सामने से तुम आए थे
वो रूप तुम्हारा देवों सा
लब ज़रा ज़रा मुस्काए थे
जुड़ने में एक न पल चूके
रिश्ता जन्मों जन्मांतर का
मानो सदियों से मिलन था ये
बस भेद था एक कालांतर का
बहुत दिनों की बात हुई
जो मैंने देखा था सपना
मेरा हाथ है अब उन हाथों में
बन गया है वो मेरा अपना
प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी