कविता

ख्वाहिशों का आसमान

ख्वाहिशों के आसमान पर
उम्मीदों के सितारे हैं
चमचमाते,खूबसूरत पर
दूर बड़े सारे हैं
चाह कर भी हाथ नहीं आते
इतने सारे और इतने प्यारे हैं
हर रोज एक नया तारा
अपने आसमान पर पाता हूं
अपनी उम्मीदों को बस ऐसे ही
जिंदा मैं रख पाता हूं
काश कभी ऐसा भी दिन आए
उनमें से कोई एक तारा
कभी मेरी झोली में आ गिर जाए
इसी आस में हर रात
अरमान लिए सो जाता हूं
अगले दिन फिर एक तारे को
तराशने लग जाता हूं
— आशीष शर्मा “अमृत”

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान