उसने कैमरा उठा लिया आग की लपटें उठ रही थी वो मुश्किल में फंसी हुई थी मदद के लिए लगी चिल्लाने तो लोगों ने कैमरा उठा लिया अपने हाथों को लगी उठाने लगी उम्मीद से गुहार लगाने किसी ने फ़र्ज़ अदा न किया उसकी अब सांसे टूट रही थी सड़क पे हुई दुर्घटना बड़ी थी […]
Author: आशीष शर्मा 'अमृत'
कविता
जब भी प्रेम से सराबोर हम खुद को पाते हैं जब इस अनमोल भाव को कह नहीं पाते हैं बिन कहे प्रेम का रस सभी पर यूँ बरसाते हैं तब हम में कहीं न कहीं श्रीहरि ही समाते हैं जब हम अपनी वाणी से सभी को लुभाते हैं कुछ चंचलता दिखा कर,बचपना झलकाते हैं सभी […]
सफर सुहाना
अपने अहम को न हावी होने देना कोई वहम ना अपने दिल में लेना उसकी अच्छाइयों को परख लेना तुम्हें फिर वो अच्छा लगने लगेगा ईर्ष्या को अंदर ना पलने तुम देना उसकी काबलियत को भी सराहना अपने अनुभव तुम उसे सब बताना तुम्हें फिर वो अपना लगने लगेगा दुख सुख में उसका साथ तुम […]
बचपन के दिन
बचपन के वो दिन आज याद आए कितने बेपरवाह मस्तमौला थे हम शैतानियों के वो सारे पल याद आए टिकते नहीं थे एक भी पल घर में आता हूँ कह,निकल जाते थे घर से बहानो के सारे वो तरीके याद आए हर चीज़ लगती थी कितनी आसान ख्वाबों के वो महल छूते थे आसमान आसमानी […]
परवाह
परवाह उनकी मैं क्यूँ करूँ ? जिन्हें हर पल मैं खटकता हूँ अपनी मर्ज़ी का मैं हूँ मालिक अपनी ही धुन में,मैं चलता हूँ कच्चे रिश्तों की इस डोर को जोड़ने की कोशिश करता हूँ गल चुके हैं अब धागे इसके पर विश्वास मैं मन में रखता हूँ कैसे मान लूँ यूँ हार मैं अपनी […]
हिंदी
हिंदी,जैसे सजी है बिंदी माथे पर शोभित जिससे मेरी माँ भारत है अनेक भाषाओं के पहने वो गहने सभी से सुंदर बस उनकी मूरत है सरल सुलझी ये मेरी माँ के जैसी बड़ी प्यारी देखो इसकी सीरत है सभी भावों की छवि इस दर्पण में आसान इतनी कि सभी को हैरत है — आशीष शर्मा […]
भारत की बेटी
बड़े गर्व से कहती हूँ मैं भारत की बेटी हूँ संस्कृति व सभ्यता का सम्मान सदा मैं करती हूँ सभी मुझपर गर्व करें कोशिश यही करती हूँ आदर और सम्मान का ध्यान सदा मैं रखती हूँ देश का मान बना रहे विचार यही मैं रखती हूँ इस मिट्टी की खुशबू से जुड़ी सदा मैं रहती […]
अच्छा है…
कुछ रिश्ते पुराने से रहे तो अच्छा है वक़्त की धूल न चढ़े तो ही अच्छा है वही अपनापन बना रहे तो अच्छा है वक़्त के साथ इंसान बदलते देखा है इंसान की शख्सियत बदलते देखा है खुद में खुद बन कर रहो तो अच्छा है मौलिकता बरकरार रखो तो अच्छा है उड़ो पर ज़मीं […]
हाथों में
लकीरों का जाल है बस इन खाली हाथों में हाथ में कुछ है नहीं,इन मेहनतकश हाथों में दिन भर करता है मजदूरी, पापी पेट की है ये मजबूरी कुछ नहीं ये पाता,सिर्फ छाले हैं इन हाथों में फिर भी हारे नहीं, वो हिम्मत है इन हाथों में घर से दूर रहने की मजबूरी घर में […]
चेहरा
हर चेहरे के पीछे भी एक चेहरा छिपा होता है हर मुस्कुराहट के पीछे भी तो दर्द छिपा होता है ज़िन्दगी के नाटक में सभी का किरदार होता है किसी को कम किसी को ज्यादा वक़्त मिलता है वो,जिनके चेहरे पे ना कोई मुखौटा लगा होता है वो,जिनकी आँखों में जज़्बात का समुंदर होता है […]