कविता

आदत सी हो गई है 

ढेर सारी उम्मीदें बार बार टूटने की 

टूटी उम्मीदों में खुद को बहलाने की

बहला कर उस दर्द को सहलाने की 

सहला कर फिर आगे बढ़ जाने की 

अब आदत सी हो गई है 

दिल की बातें दिल में ही दबाने की

दबा कर बस दिल में ढेर बनाने की

बना कर फिर दिल में बोझ बढ़ाने की

बढ़ाकर दिल के दर्द को जगाने की

अब आदत सी हो गई है 

ख़्वाबों में अलग दुनिया बसाने की 

बसाकर सारी हसरतें पूरी करने की

पूरी करने से पहले ही नींद टूटने की

नींद से जाग,हक़ीक़त पहचानने की

अब आदत सी हो गई है

— आशीष शर्मा “अमृत “

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान