डूबी शाम
कह रही हमसे ये तनहाई मे डूबी शाम
छलकने दे आंखों से अश्कों के भरे जाम
बड़ी ग़मज़दा हयात है कोई तो साथ हो
कुछ तो बयां करे वो कभी लेके मेंरा नाम
वक्त गुज़िश्ता सही यादें तो साथ हैं
चलती हैं साथ लेकिन रहती हैं गुमनाम
आ जाओ के हद हो गई है इंतजार की
हो जाए यूं पर्दादरी नज़रों से हो सलाम
सज़दे बिछाए दिल ने राहों में कई बार
यूं ही न बीत जाए कही उम्र ये तमाम
— पुष्पा ” स्वाती “