मार्गदर्शन
चार मित्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने गांव लौटे थे. कैम्पस से नौकरी मिलने का अवसर उन्होंने देश-सेवा के लक्ष्य के कारण छोड़ दिया था. गांव में आकर वहां के माहौल को देखकर उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था, कि काम कैसे और कहां से शुरु करें. विचार विमर्श जारी था-
पहले मित्र ने कहा, ‘मैं गांव में सबको शिक्षित और सभ्य देखना चाहता हूं.’
दूसरे ने कहा, ‘मैं सबको सुखी और संपन्न बनाना चाहता हूं.’
तीसरा सबको एकता के सूत्र में बांधना चाहता था.
चौथा बोला, ‘मेरी आकांक्षा है कि मेरा गांव एक शक्तिशाली राष्ट्र के हिस्से के रूप में विकसित हो.’
तभी उन्हें एक रोशनी की किरण दिखाई दी. लग रहा था किसी अदृश्य हाथ का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हो रहा था-
‘अपना लक्ष्य पाने के लिए आप सब मिलकर शिक्षा के प्रसार का कार्य आरंभ करें.’ अदृश्य हाथ ने कहा.
यह सुनकर वे विद्वान आश्चर्य में पड़ गए. फिर उन्होंने संकोच के साथ कहा, ‘केवल शिक्षा का प्रसार करके सभी लक्ष्य कैसे हासिल किए जा सकते हैं?’
‘शिक्षा वह माध्यम है, जिस पर हर व्यक्ति का लक्ष्य और उसका विवेक टिका है.” चारों मित्र उस मधुर वाणी से तृप्त हो रहे थे.
”जब लोग शिक्षित होते हैं तो उनमें उद्यमता विकसित होती है. उद्यम करने से व्यक्ति की आमदनी बढ़ेगी, जिससे राष्ट्र आर्थिक रूप से मजबूत होगा. लोगों में एकता भी स्थापित होगी और राष्ट्र शक्तिशाली होगा.” बात में दम तो है, आंखों-ही-आंखों में उनकी यही राय बन रही थी.
”अलग-अलग गुण वाले पौधों में एक ही तरह से सिंचाई की जाती है, लेकिन उनमें विभिन्न रंग-रूप वाले फूल पैदा होते हैं. उसी तरह शिक्षित होकर लोगों में सभी गुण अपने आप ही आ जाएंगे.” वाणी तनिक मौन हो गई थी.
मित्र खुश हो चलने लगे, तभी अदृश्य शक्ति ने रुकने का इशारा करते हुए कहा- ”एक बात सुनते जाओ, शास्त्र के साथ शस्त्र की शिक्षा भी देना, आड़े वक्त में वह भी काम आती है.”
अदृश्य हाथ मानो उन्हें एक आदर्श शिक्षक की तरह समीचीन मार्गदर्शन दे रहा था.
एक आदर्श शिक्षक का मार्गदर्शन जीवन-समाज-देश-दुनिया को सही रास्ता दिखाकर उस पर चलने साहस भी पैदा कर सकता है. एक आदर्श शिक्षक के बिना कोई भी दूसरे किनारे तक नहीं जा सकता क्योंकि ईश्वर से साक्षात्कार का मार्ग आदर्श शिक्षक या गुरु ही प्रशस्त कर सकता है! गुरु के ही सानिध्य से हृदय में चेतना की उत्पत्ति होती है और यही चेतना विश्वास उत्पन्न करती है. अन्तर्मन में आत्मज्ञान की ज्योत्सना गुरु के मार्गदर्शन से ही प्रस्फुटित होती है सही और उचित मार्ग चुनने के लिए जो ज्ञान चक्षु हमारे अन्दर विकसित होते हैं वो एक गुरु की ही महिमा से सम्भव है और ये गुरु की करुणावृष्टि, करुणादृष्टि है जो शिष्य को गुरुतत्व का दान देकर उसे गुरु बनाता है. एक आदर्श शिक्षक के ही सद्प्रयास से आज चंद्रयान-2 चांद की चौखट पर दस्तक दे सका है.