फिर सदाबहार काव्यालय- 37
विश्वास के बीज को अंकुरित होने दो
विश्वास के बीज को अंकुरित होने दो
आशाओं के तरु को पल्लवित होने दो-
माना है अभी चंहुं ओर अंधियारा
लगता नहीं है कभी होगा उजियारा
पर, तनिक रुको, भोर को होने दो
सूरज देवता को तनिक सक्रिय होने दो
फिर अंधियारे का वश नहीं चल पाएगा
उजियारा प्रसन्नता से अपने पंख फैलाएगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.
माना आज अमावस की तमस भरी रात है
लगता है चन्द्रमा का कभी अस्तित्व था यह पुरानी बात है
पर, तनिक रुको, दिन को एक पग और खिसकने दो
चन्द्रमा को थोड़ा-सा विश्राम कर क्लांति से मुक्त होने दो
फिर चन्द्रमा प्रेम से अपनी झलक दिखलाएगा
धीर-धीरे बढ़कर पूर्णिमा को चांदी की थाली-सा दिखकर हर्षाएगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.
माना आज चारों ओर घोर आतंक का साया है
देश-विदेश में, धरती-अंबर में, घर के भीतर-बाहर भय का भूत समाया है
पर, तनिक रुको, पतझड़ जैसी पीड़ाओं को थोड़ा सिमटने दो
बहार जैसी मुस्कानों को मुस्कानों से लिपटने दो
फिर आतंक का दानव किसी कोने में बैठकर आंसूं बहाने को विवश हो जाएगा
आस्था का उपवन पुष्पित और पल्लवित होकर मन को महकाएगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.
लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
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माना चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर पहले,
गुम हो गया चंद्रयान,
विक्रम और प्रज्ञान गुम हो गए,
यह गुम होना भी है हमारे वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम की पहचान,
विश्वास अभी भी बाकी है,
विक्रम और प्रज्ञान फिर से झलक दिखाएंगे,
अपने वार्तालाप से हमें बहुत कुछ समझाएंगे,
भले ही सब इसे कहें चमत्कार,
एक दिन सफल होगा हमारे वैज्ञानिकों का यह प्यारा-सा अभियान,
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा,
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.