“मरा नहीं है जोश”
चन्द्रयान पर उतरना, एक कदम था दूर।
किन्तु जरा सी चूक से, हुआ देश मजबूर।।
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विफल हुए तो क्या हुआ, मरा नहीं है जोश।
अन्तरिक्ष विज्ञान का, पास हमारे कोश।।
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चन्द्रयान की विफलता, अन्तिम नहीं पड़ाव।
और अधिक है बढ़ गया, अब तो चन्द्र-जुड़ाव।।
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एक विफलता से नहीं, मानेंगे हम हार।
जग को फिर विज्ञान का, बाँटेंगे उपहार।।
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अनजान सी राह थी, अनजाना परिवेश।
पायेंगे खोये हुए, फिर से हम सन्देश।।
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बन्द नहीं हमने किये, आशाओं के द्वार।
अभी और सम्भावना, खोज रही सरकार।।
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सदा हार के बाद ही, मिल जाती है जीत।
कोशिश करने से मिले, फल भी आशातीत।।
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हर छत्ते में तो नहीं, होता है मकरन्द।
चन्द्रविजय के मिशन का, काम न होगा बन्द।।
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जारी हैं कोशिश अभी, लायेंगी वो रंग।
जीवित अपना हौसला, कभी न होगा भंग।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)