लघुकथा – विकलांग सोच
अपनी हार्डवेयर की दुकान पर मिस्टर गोयल बहुत दिनों के बाद आये थे। वे कई महीनों से बीमार चल रहे थे। बेटा ही दुकान संभाल रहा था।
आज दुकान का मुआयना वे बड़े ही सूक्ष्मता से कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक युवक जिसका बांया हाथ कटा हुआ था।वह दुकान में काम कर रहा था। यह देखकर मिस्टर गोयल क्रोधित हो उठे और अपने बेटे पर नाराज होते हुए कहा,”पीयूष, इस दिव्यांग लड़के को किसने काम पर रखा है? “
बेटे ने शांत स्वर से कहा, ” पापा इसका नाम संतोष है । इसे दुकान पर काम करने के लिए मैंने रखा है।”
“पर, यह तो दिव्यांग है।यह भला यहां क्या काम करेगा?” मिस्टर गोयल ने कहा।
मिस्टर गोयल की बातें सुन रहे उस युवक ने उत्तर में कहा,”सर, क्या जो दिव्यांग होते हैं वे क्या कुछ काम नहीं कर सकते? हम तो बहुत कुछ करके दुनिया को दिखाना चाहते हैं परंतु आप जैसे समाज के लोगों की विकलांग सोच हमें और अधिक विकलांग और लाचार बनाने को तूल जाते हैं।आप जैसे लोग हमें केवल दया का पात्र बना कर छोड़ना चाहते हैं। सर, आप चिन्ता न करें मेँ अपने एक हाथ से ही सारे कार्य कुशलता पूर्वक करके आपको दिखा दूंगा।”
यह कहते हुए उस युवक के चेहरे पर आत्मविश्वास झलकने लगा और युवक की बात सुनकर मिस्टर गोयल के चेहरे पर शर्मिन्दगी झलकने लगी।
— डॉ. शैल चन्द्रा