कहानी – गाइड
स्पेन के पर्यटकों का दल हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं की एक चोटी मून पीक को चढ़ने के लिए रात के अंधेरे को चीरता हुआ धीरे -धीरे आगे बढ़ रहा था। इनमें एक नवयुवती जिसका नाम मर्सीडीज है, वह कोई तीन घंटे पहले एक चट्टान से फिसली थी और कोई बीस फुट तक फिसलती गई थी। उसके गाॅड ने उसे बचाने का प्रण किया होगा कभी, तभी वह एक देवदार के तने में फंस गई थी। उसे रस्सियांे की मदद से ऊपर रास्ते तक पहुंचाया गया। उसके पांव में जबरदस्त मोच आ चुकी थी, वह पीड़़़ा से कराह उठी थी।
वह अठारह वर्ष की भूरें बालों वाली युवा,रमणीय, कोमल शरीर की लड़की है लेकिन लगातार चलने व फिर फिसलने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी थी । वह निर्णय की पक्की लग रही थी। उसने दल को परेशान न करने की ठानी और लगभग घिसटते हुए – ऊपर चढ़ने का फैंसला किया। हिमाचल में 17000 फुट की उंचाई पर चद्रखानी दर्रा रात के वक्त उनका इंतजार नहीं कर रहा था, पर चांद ऐसे सोच रहा था कि मानो इन हिम्मत से भरे पर्यटकांे के लिए वह अपनी उधार ली हुई रोशनी उनके ऊपर बरसा दे।
चांद दानवीर बनने का हठ कर चुका था।उसने अपनी सारी रोशनी को अंधेरे में भटक रहे रास्ते पर फैला दिया पर ठंडे चांद की रोशनी हिम्मती मर्सीडीज के लिए ज्यादा कुछ न कर पाई। वह अचेतन होने लगी। उनके लीडर मैन्युअल ने अपने दल के गाइड कमल से कुछ मदद की गुहार लगाई।गाइड की आंखें चांद की रोशनी में कुछ सोच कर चमकी। उसने अपनी तेज रोशनी वाली टार्च को पहाड़ के एक कोने की ओर नीचे ढलान की एक और फेंकना शुरू किया। दूसरी ओर से भी तेज रोशनी उन पर पड़ने लगी। गाइड की आंखें और ज्यादा चमकी।‘‘उसने हमें देख लिया है,’’ गाइड कमल चिल्लाया, ‘‘दीपक,मदद चाहिए ! ऊपर आओ दल का एक सदस्य बुरी तरह से घायल है,मदद करो,ऊपर आओ दीपक ।’’
ये आवाज दूर पहाड़ से टकराने के बाद फिर से दल के कानों तक पहुंचने लगी,दल को लगा कि जैसे इस रात का अंधेरा उनकी फरियादों को फिर से वापिस भेज रहा है। पहाड़ अभिमान के नशे में चूर था ।एक ओर पहाड़ से रोशनी ऊपर चढ़ने लगी और पूरा दल अपनी थकावट के बोझ में दबी खुशी को सहारा देकर उठाने लग पड़ा। उनके गाइड कमल ने उस खुशी को ओर बढ़ाने के लिए उस रोशनी के मालिक की तारीफ या पहचान के बारे कुछ बताना शुरू किया। वह जो फरिश्ता पहाड़ के एक कोने से आ रहा है हमारा मददगार बनने के लिए,वह दीपक है।
वह हमें अब कई बार इस मौसम में इन वादियों में भेड़-बकरियां चराता मिल जाता है, वह एक पढ़ा लिखा नौजवान है और पर्यटन ,पहाड़,प्रकृति पर सुंदर गीत रचता है, वह एक अच्छा गाइड व टै्रकर भी है वह कई बार मून पीक पर चढ़ाई भी कर चुका है, अफसोस कि वह अब टैं्रकिग में गाइड नही बनता। दल ने अपने मददगार बनने वाले के लिए जिज्ञासा तो होनी ही थी इसलिए दल के लीडर मैन्युअल ने कमल से पूछा, ‘‘क्यांे?’’ कमल बोला,‘‘वह हमेशा प्रकृति की नाराज़गी के कई किस्से सुनाता है। हमें उसकी कुछ बातें अच्छी नहीं लगती जैसे वह हमें आप जैसे पर्यटकों को यहां-वहां पहाड़ों पर ले जाने का मना करता है।
वह कहता है कि यह पर्यटक तुम्हारी सच्चाई ,प्रकृति प्रेम,भोलापन सब तहस नहस कर देगें। वे तुम्हे तमाशे की वस्तु समझेगें,वे तुम पर तरस खाएगें,तुम्हें देहाती,दीन और हय दृष्टि से देखेंगे। तुम पहले – पहल तो उन लोगों की सेवा में अपने आप को भूल जाओगे और फिर अपनी संस्कृति को धीरे – धीरे खो दोगे,तब तुम अपने -आप को असहाय महसूस करोगे। वह सब तहस नहस कर देगें,तुम्हे भी अपने रंग में रंग देंगे। तुम तब अलग से सपने देखोगे और अपनी आत्मा के स्वभाव को खो दोगे।’’ मैन्युअल ने टार्च की लाईट की दूर से आती रोशनी पर आॅंखें गड़ाते पूछा। ‘‘ऐसा क्या हुआ कि वह अपनी सोच में इतना बदलाव ला बैठा।’’
कमल ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘बचपन में वह गांव का एक होनहार लड़का था।हम दोनो अच्छे दोस्त थे, पर वह बहुत पढ़ाकू था, हम कई उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए, स्कूल जाते थे।जब भी कभी हमारे इस छोटे से गांव में कई बार पर्यटक आते, वे गांव में प्रसिद्व मंन्दिर के दर्शन करते और फिर उपर पहाड़ की चोटी की ओर निकल जाते। हमें उनके कपड़े उनको साजो- सामान बड़ा अच्छा लगता।वे कभी हमसे रास्ता पूछते पर हम उनकी भाषा नहीं समझते।
दीपक अपनी कुछ सीखी अंग्रेजी में उनसे बातें करने लगता तो वे लोग बड़े खुश होते। हम ऐसे ही कई बार उपर तक उन्हें रास्ते तक छोड़ आए मून पीक तो नाम अभी मशहूर हुआ है, हमारे दादा- पापा सब इसे चंद्रशिखा कहते हंै। मैं और दीपक बचपन में कई बार भेड़-बकरियों संग उस पीक तक अपने-अपने बाप दादा के साथ गए है। पीक के दूसरी ओर एक पवित्र झील है, जहां सावन भादांे को मेला लगता हैं। वहां भी हम कई बार जा चुके हैं।
हमें टैªकिंग का शौंक था,शौंक क्या! जब पूरे गांव के मुख्य पेशा भेड़ -बकरियों को पालना है तो फिर भेड़- बकरियों के साथ न जाने हमने कितने ही पहाड़ की चोटियों को अपने पावों से नाम डाला होगा। बाहरवीं की पढ़ाई करने के बाद वह 25 किलो मीटर दूर कालेज गया।
उसने मन में एक बात ठान ली थी कि वह अंग्रेजी मे सबसे बेहतर बनेगा। वह ऐसी अंग्रेजी बोलने लगा, जैसे आप लोग बोलते हैं। उसने एक अच्छा गाइड बनने का सपना हमें बताया था। वह कहता देखना कुछ दिनों के बाद जब यहां पर्यटकों की भरमार होगी तो फिर वह अच्छा अंग्रेजी बोलने बाला गाइड ढूंढते हुए आंएगे। तब तुम लोग भी अच्छी अंग्रेजी बोलने को ललचाओगे, पर तब तुम्हें बड़ी मुश्किल होगी इसलिए इस वक्त अंग्रेजी पर पकड़ बना लो तो बेरोजगार न रहोगे। सरकार हमारे गांव से निकलने वाले टै्रक पर बहुत से काम करने वाली है।फिर एकदम ही उसके विचार बदल गए।’’अब दल की जिज्ञासा बढ़ चुकी थी।
इस बार मर्सीडीज बोली,‘‘कमल!क्या इसका कोई ठोस कारण तो होगा।’’ कमल बोला,‘‘एक बार मेरे जोर देकर पूछने पर उसने इसका कारण सिर्फ यही बताया था कि वह अब रोज सपने में पहाड़ के देवता को अपने पास खड़ा महसूस करता है, पहाड़ का देवता उसको बार- बार यही आग्रह करता है कि मत लाओ तुम इन बिन बुलाए मेहमानों को मेरा सीना रौंदने के लिए। तुम लोग कुछ पैसे के लालच में इन सनकी ,पागल व हिम्मत भरे साहसिक पर्यटकों को जब मेरे पास लाते हो,मेरा सुख चैन सब खो जाता है, मेरी भक्ति भंग हो जाती है ,मेरे देवता होने की शक्तियां क्षीण होने लग पड़ती हैं। यही लोग पहले इक्का दुक्का आएगें,फिर कतारों में आएगें और फिर पहाड़ पर नंगा नाच होगा,फिर ये वादियां ज़हरीली हवा की गंध से भर जांएगीं तब मैं भी इन वादियों को छोड़कर किसी ओर पहाड़ पर अपना बसेरा बना लूंगा तब तुम इंसानों की रक्षा कोई न कर पाएगा, तुम तब सब के सब प्रकृति मां की नाराज़गी के शिकार बन सब नदी -नालों में बहते जाओगे,तुम्हारे ऊपर अथाह सागर का पानी बरस पडे़गा,जो तुम्हारे घर, खेत खलिहानों को दूर तक बहा ले जाएगा,तुम पर बड़े पत्थरों की तेज आंधी बड़ी निर्ममता से गिरेगी,तुम तब बहुत असहाय नजर आओगे। यह सब तुम्हें समझ न आएगा। तुम्हारे कई देवता तुम्हें ठुकरा देंगे वे तुम्हे छोड़कर स्वर्ग प्रवास पर लौट जाएंगे और कभी वापिस न आंएंगे, तुम बिल्कुल अकेले हो जाओगे। इसके बाद वह सिर्फ भेड़- बकरियों को हांकने वाला एक युवा पढ़ा लिखा गद्दी लड़का बन गया। वह पुश्तैनी काम में हज़ारों खूबियां ढूंढ कर एक साधु सी बातें करने लगा। वह अलग – थलग रहने लगा।’’
दीपक अंधेरे से निकलकर दल के सामने पेश हुआ। दीपक सचमुच चांद की रोशनी को अपने साथ ले आया था। अंधेरे में वह मध्यम कद का गठीला नौजवान सारे दल को रात का देवता महसूस हो रहा था। थकी हारी व दर्द से पीड़ित मर्सीडीज के लिए तो वह सचमुच का देवता बन चुका था। वह बड़ी एवं तीक्ष्ण आंखों के साथ पहली नज़र में मर्सीडीज को बहुत सुंदर युवक लगा था।
दल ने मर्सीडीज को दीपक के हवाले कर आगे बढ़ने का फैसला किया। दीपक के मुंह से अभी कोई भी शब्द नहीं निकला था। उसने गर्म भेड़ की ऊन से बने अपने कोट को अपने एक हाथ पर टांगा था। मर्सीडीज ने कहा,अगर आप मेरी वजह से मून पीक के नज़ारे को खो दें तो मैं खुद में बहुत ग्लानी महसूस करूंगी,कृप्या आप आगे बढ़े,मैं चाहे तो यहीं रुक जाऊंगी,लेकिन दल के लिए बाधा न बनूंगी।
अब सिर्फ उसके मन में एक ही शंका थी कि कहीं दीपक ने उसकी सहायता करने में असमर्थता जाता दी तो पूरे दल को यह तो यहीं कहीं आसपास रुकना पड़ेगा या फिर ऐसे ही घिसटते हुए आगे बढ़ना पड़ेगा। उसने अपने गाॅड से प्रार्थना की। वह सचमुच ही उस युवक की सहायता प्राप्त करना चाहती थी। दीपक पहली नज़र में मर्सीडीज को न तो एक देहाती लगा था और न ही शहरी। उसने एक ब्रांडेड टै्रक सूट डाला था और पावों मंे रीबाॅक के जूते डाले थे। टाॅर्च की लाइट में उसका टै्रक सूट व शूज की पट्टिया साफ चमक रही थी। मर्सीडीज को ऐसा लगा कि जैसे एक स्पैनिश राजकुमार दूर पहाड़ियों से उतर कर उसे मुसीबत से निकालकर अपने राजमहल में ले जाने आया है।
दीपक ने मर्सीडीज की ओर देखा,उसके भूरे बालों पर टार्च की रोशनी पढ़ते ही वह सुनहरी बालों वाली,चांदी सी सफेद चेहरे की मल्लिका कोई राजकुमारी पीड़ा से ग्रस्त मदद की गुहार लगा रही थी। उसके चेहरे पर दीपक को देखते ही हलकी मुस्कुराहट फैल गई। उसकी आंखों में मदद का आग्रह था। पहली नज़र में उसे वह पराया नहीं लगा बल्कि एक सुंदर नौजवान,तहज़ीब से भरा हुआ और हिम्मती। दीपक ने कुछ देर अपने पुराने साथी टै्रकर व गाइड कमल से एक कोने में कुछ बातें की।
कमल ने उसे साफ कह दिया कि इस दल का मुख्य उद्धेश्य पूर्णिमा की रात में मून पीक के बेस कैंप में पहुंच कर पीक की अद्वित्य छटा को निहारना है। बेस कैंप में पहले से कैंपिग का सामान है बस हम ये दो- तीन घंटे का रास्ता पूरा कर लेंगे, सिर्फ मर्सीडीज को छोड़कर दल बिल्कुल ठीक है और इन्हें टैªकिंग का ज्ञान भी है हम आगे आने वाली बड़ी ढलान को पूरा करके ऊपर बेस कैंप में पहुंच जाएंगे। अगर तुम हमारे पुराने साथी होने के नाते मदद करो तो मर्सीडीज जो पीड़ा से कराह रही है उसे आज की रात अपने अस्थाई डेरे में आराम करवा दे वर्ना पूरा दल यहां खुद भी परेशान होगा,और मुझे भी परेशान करेगा।
दीपक ने कहा,‘‘अगर मर्सीडीज अकेले मर्द के साथ रात भर रहने को तैयार हो तो मुझे कोई एतराज नहीं,कहीं परदेस में उसका मन डर के साए में पूरी रात न बिताए।’’ गाइड कमल फिर से मर्सीडीज के पास गया। मर्सीडीज ने कहा,‘‘अब जब मैं आपके देश के हवाले हूं,तो मुझे आप लोगों पर विश्वास है। मैं इस वक्त बस आराम चाहती हूं चाहे तो आप मुझे इन पत्थरों पर छोड़ जाओ।’’ कमल ने फिर दल के मुखिया मैन्युअल को भरोसा दिलाया। दीपक ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और चांदनी रात में नाजुक पर बहादुर लड़की ने एक अन्जान व्यक्ति के हाथ को पकड़ा लिया। दीपक ने गर्म ऊनी कोट मर्सीडीज को पहनाने की कोशिश की वह पहले तो थोड़ा झिझकी पर फिर इसी कड़कड़ाती ठंड में उसे कोट डालते ऐसा लगा जैसे उसने एक भद्र पुरूष का साथ पाकर जीवन की अथाह खूबसूरती व रिश्तों की गर्माहट को पा लिया हो।
दल आगे निकल गया और एक अंजान फरिश्ते के संग कोमल मर्सीडीज का नाता जोड़ गया। मर्सीडीज ने कराहते हुए उसके साथ एक तरफ की ढलान पर टेड़े-मेड़े रास्ते पर पीड़ा के साथ उतरना शुरू किया। वह बड़ी मुश्किल से कदम उठा पा रही थी। अभी उसने एक पत्थर से नीचे पांव रखा ही था कि वह फिर से कराह उठी। उसकी मोच ने उसे भंयकर दर्द दे दिया था। वह वही बैठ गई । वह रोने लगी। दीपक ने देखा,क्रिसटल की तरह आंसू उसकी आंखों से टपकने लगे थे,टार्च की रोशनी में वो आंसू फिर अनमोल हीरों की तरह चमकने लगे थे। दीपक ने चांद को एक नज़र देखा और मर्सीडीज से एक आग्रह किया,‘‘कृप्या मैडम अगर आप इज़ाजत दें तो मैं आप को अपने कंधे पर उठा कर डेरे तक पहुंचा सकता हूं,यहां ज्यादा देर बैठना ठीक नहीं। भालू इंसानों की गंध को सूंघ रहा होगा,हम अंधेरे में फंसे हैं।’’ हार चुकी मर्सीडीज ने हां में स्वीकृती दे दी।
दीपक ने एक झटके में इस कमसिन युवती को अपने कंधे पर उठा लिया। उठाते वक्त उसके शरीर की कोमलता का अहसास दीपक के हाथों के रास्ते,पूरे शरीर में फैल गया। ये अहसास फिर बढ़ता रहा,उसके सुनहरे बाल दीपक के चेहरे पर पड़ते,तो उसका शरीर झुनझुना उठता पर अंधेरे में उबड़ खाबड़ रास्ता उसे इस सुंदर अहसास को लेने नहीं दे रहा था। वह थक जाता तो कुछ पल उस नौजवान युवती को ज़मीन पर उतारता,फिर उसके नाजुक कूल्हो को एक हाथ से जकड़ कर उठाता और एक बाजू से उसके बाजू को अपने गले में फंसाता । यह बंधन जब मजबूत हो जाता, वह फिर उतर चलता। बेबस मर्सीडीज दीपक के मजबूत शरीर की एक- एक मांसमेशी के हिलने का अहसास ले रही थी, पर उसका शरीर पीड़ा के कारण अचेतनता की ओर भी उसे ले जा रहा था। पर वह अचेतन नहीं होना चाहती थी।
वह पहली बार एक हिंदुस्तानी मर्द के कंधों पर सवार हुई थी। वह अपनी विनित युवती की आत्मा को एक साहसी युवक की असाधारण सहानुभूति भरी अपनी आत्मा से जोड़ चुकी थी। उसे ऐसे लग रहा था जैसे वह सदियों से इस युवक के साथ जुड़ी है। वह हजारों मील का सफर करके यहां एक गरीब चरवाहे की सहानुभूति के जाल में फंसने आई है।
वह एक अमीर मां-बाप की लड़की है पर उसका जुनून व सोच उसे इन पथरीले पहाड़ो पर ले जाता रहा है। ईश्वर ने उसे अभी बहुत कुछ बताना था। वह उस भद्रपुरूष की गुप्त अराधना करने लगी। वह उसकी शक्तिशाली काया की मुरीद हो रही थी। वह ईश्वरीय मदद का अहसास पा रही थी। मर्सीडीज को लग रहा था कि ये युवक प्रकृति के रस से अपनी आत्मा को सराबोर कर चुका है।
ये किसी हिमालयी साधु सा प्रतीत हो रहा है जो जीवन, ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई को समझ कर उस अपनी धुन में जीना सिखा रहा है। उसके मन में उसके लिए कुछ प्रेम के बीज अंकुरित होते नजर आने लगे थे जिन बीजों को हवा, पानी व जमीन मर्सीडीज ने नहीं बांटी । वे तो खुद मनमानी करके ये हवा, पानी और जमीन चुरा ले गए थे। इस नवयुवक का स्पर्श उसके शरीर में कई तरह के संपदन पैदा कर रहा था।अचेतन सी युवती उस दयालु युवक के डेरे में पहुंच चुकी थी। लेकिन वे अब अचेतन हाने के बाद नींद में जा चुकी थी। युवक ने उसे अपने डेरे के एक कोने में बिछे मोटे कंबलों पर सुला दिया। मोम सी नाजुक युवती अपने शरीर की असहाय पीड़ा के कारण आंखें नहीं खोल पा रही थी। उसके नाजु़क होंठ सूखे गुलाब की पखुड़ियों से लग रहे थे उसके सुंदर गाल शरीर के बुखार से मोम की तरह पिघल रहे थे।
दीपक ने अपनी एक कमरे की झोंपड़ी जो टीन के पतरों से छाई थी और बीच-बीच में तिरपाल से भी ढकी थी वह पत्थरों को सही ढंग से टिकाकर बनाई दीपक के दादा के समय की झोंपड़ी है ,जो बर्फ पड़ने से कई बार टूटी और कई बार बनी। अचेतनता कें स्वप्न में मर्सीडीज एक नौजवान दोस्त के साथ इस पृथ्वी के हर कोने तक उडती रही, ये धरा, ये हवा, ये सागर, ये पहाड, कहीं ज्वालामुखी की भयानक गर्द में घूमती और कभी सागर की अथाह गहराईयों में गोते लगाती।
मर्सीडीज ने अपनी थकी आंखें खोली। वह अब तक इस दुनिया से बेखबर थी, उसे लगा वह नए लोक मे जन्म लेकर इकदम एक जवान युवती बन गई है, उसकी अचेतनता ने उसे जड़ कर दिया था। उसे लगा जैसे वह किसी स्पेनिश राजकुमार के राजमहल में सोई थी और अब वही राजकुमार उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। उसने अपने पांव की ओर देखा। गर्म पट्टियों से उसका पांव बंधा था,ये कीमती पट्टियां उस झोंपड़ी में कहंा से आई?
वह उठी तो एक टीस के साथ उसके पांव ने पीड़ा होने का स्पष्ट प्रमाण दिया। उसके बिछोने से कुछ दूरी पर मिट्टी के तेल से जलने वाला दीया हवा में फड़फड़ा कर अपने अस्तित्व को बताने लगा। वह धीरे-धीरे पतले से दरवाजे से बाहर निकली। बाहर दीपक लकड़ियां जलाकर आग सेक रहा था। मर्सीडीज को देखते ही उठा और बोला,‘‘मर्सीडीज क्या अब आराम मिला है,आओ थोड़ा आग सेंक ले ।’’ उसने जल्दी में एक फटी सी बोरी आग के पास बिछा दी। मर्सीडीज बोरी पर बैठती हुई बोली,‘‘आप एक फरिश्ते से कम नहीं हो, क्या इतने घने जंगल में तुम अकेले रहते हो ?क्या तुम्हें डर नहीं लगता? क्या तुम हमेशा यहीं रहते हो?’’ दीपक ने मर्सीडीज की दो चांद सी चमकती आंखों में देखा और कुछ सोच कर बोला,‘‘बस यही मेरा घर है, आराम है,ये देवदार व बुरांश के पेड़ खड़खड़ाते और कर्कश आवाज करके मुझे रात भर अपना साथ देते हैं। चरागाहों में घास के तिनके मेरा इंतजार करते हैं।’’
मर्सीडीज बोली,‘‘तुम बड़ी शायराना बातें करते हो प्रिय दीपक।’’ और मर्सीडीज ने एक मुस्कराहट अपने सुंदर चेहरे पर आग की रोशनी में फैलाई । दीपक को वह किसी देव कन्या सी प्रतीत हुई । वह भी मुस्कुराया और बोला,‘‘ ये जंगल ही कविता है,यहां हर दिन,हर रात ही एक कहानी है,यहां तो सब गाते हैं कविताएं सुनाते हैं,नाच गाना करते हैं। प्रति ध्वनियां गूंजती है, पत्थर राग छेड़ते हैं।’’
मर्सीडीज को दीपक की बातें किसी स्पेनिश कवि की तरह लग रही थी। वह फिर बोली ,क्या तुम हमेशा यही रहोगे? तुम्हारा कोई और घर नहीं। दीपक बोला,‘‘हे विदेशी परिन्दें,अब जब तक मेरा मन इन सब कवियों से जुड़ा रहेगा ,तब तक यहां रहूंगा,फिर तलहटी में बसे अपने छोटे कस्बे की ओर लौट जाऊंगा,मेरे पास आराम करने का वक्त नहीं । तुम एक साध्वी की तरह मेरे मन में बसे ईश्वर का भेद जानने आई हो,मुझे ऐसा प्रतीत होता है तुम अपने मन को हमेशा सुंदर दृश्यों, प्रकृति के असंख्य चित्रों ,हसीन वादियों की दूर तक फैली झील में डूबोए रखती हैं तुम शायद अपनी धन संपदा के दम पर अपनी बनाई योजनाओं पर कामयाब होती हो और फिर प्रसन्नता लिए यहां -वहां विचरण करती हो। मैं या मेरे जैसे लोग मन का कहना नहीं मानते और उसको छोटे- छोटे जीवन यापन के कार्यो में लगा कर उसके लिए बाहरी दुनिया के सब दरवाजे बंद कर देते हैं।एक दिन तुम इस सारे भौतिक संसार ,इस प्रकृति की रचना के चक्रव्यूह को देख लोगी समझ लोगी,पर तुम्हारा मन फिर भी शायद चैन से नहीं बैठेगा। मेरे लिए हर पल,हर क्षण प्रकृति का एक पूर्ण साक्षात्कार करवाता है तुम अभी भी मून पीक के दृश्य ,कैंपिग में अपने साथियों की मस्ती के लिए तड़फ रही होगी,मुझे ऐसा लगता है पर तुम कब तक ऐसा करोगी,इस प्रकृति रुपि माया की कोई अथाह नहीं ।’’
मर्सीडीज बोली,‘‘तुम तो हमेशा भेड़ – बकरियों को हांकने वाले उनके लिए अपनी सारी मानसिक व शारीरिक उर्जा खत्म करने वाले,बहुत सा समय अपने खाने पीने का सामान इक्ट्ठा करने व पकाने मे बिताते हो तो फिर तुम्हे जिंदगी नीरस नहीं लगती।’’
दीपक मर्सीडीज को देख कर मुस्कुराया और अंगारों को हिलाते हुए बोला,‘‘मर्सीडीज मैम,यही तो फर्क है तुम्हारी और हमारी सोच में,हमारा मन इन भेड़ो की हांकते हुए,उनके लिए नई चरागाहें ढंूढने ,नए जंगल ढूंढने में लगा रहता है साथ में यह मन ईश्वर के बनाए पहाड़ों से नीचे फैलती रोशनी,बादलों के बरसने के बाद पानी की बूंदों के रास्ता बनाने की कार्य प्रणाली में बहुत कुछ पा लेता है,इन वृक्षों को आसमान की ओर ईश्वर का धन्यवाद करते देखो,उनके आंचल में छिपे नन्हें कीट पंतगों की दुनिया को देखो। वे वृक्षों का हमेशाा गुणगान करते रहते हैं क्या तुम उनके शोर में मधुर स्वर की स्वर लहरियों को सुन सकती हो? क्या तुम कल – कल बहते झरनों ,इन पत्थरों को हमेशा भक्ति भाव में ईश्वन आराधना में बैठे महसूस कर सकती हो? क्या तुम इन पथरीले रास्तों पर भटकती मेरी भेड़ -बकरियों की आंखों में मेरे लिए उमड़ते धन्यवाद को महसूस कर सकती हो? मैं कर सकता हूं इसलिए,यही मेरा अब यही कर्म मार्ग है, मुझे अपने मन को दूर पहाड़ की चोटियों तक नहीं पहुंचाना है, उसे यहीं कहीं प्रकृति के नित नए चमत्कारों को दिखाना है ये पहाड़ रोज चमत्कार करता है ये जंगल रोज चमत्कारों का प्रंपच रचते हैं एक ईश्वर की शह पर और मैं इनका दर्शक हूं इकलौता और मेरे पास कोई गवाह भी नहीं है।मैंने अपनी जिंदगी को इन पहाड़ों के लिए समर्पित करने की ठानी है पर यह पहाड़ हम इंसानों से नाराज़ नहीं होने चाहिए नहीं तो सारा संगीत फिर दुर्लभ हो जाएगा।हमारी रीती रिवाज ,संस्कृति इन्हीं पहाड़ो नदियों,घाटियों,जंगलों,चरागाहंों के अफसानों से बनी है जो अब खत्म हो जाएगी। हे ईश्वर अब सब बर्बाद हो जाएगा।’’
यह सुनकर मर्सीडीज बोली,‘‘क्या बर्बाद हो जाएगा?कैसे बर्बाद हो जाएगा?,तुम क्या कहना चाहते हो दीपक?’’ दीपक ने अंधेरे की ओर पेड़ो को देखा और बोला ,‘‘तुम नहीं समझोगी मर्सीडीज! ये एंडवेंचर ये प्रकृति,पहाड़ तुम्हारे जैसे पर्यटकों के लिए एक तमाशा हैं, तुम प्रकृति के नजारों को एक नई दुल्हन सी समझते हो, और चाहते हो कि वह दुल्हन बार – बार घूंघट उतारकर उसका चेहरा देखने की कोशिश करते हो। तुम लोग अब दर्जनों से सैकड़ो में आने लग पड़े हो, अब सरकार तुम्हारे लिए टै्रकर हट बनाने वाली है,ऊपर मून पीक के पास एक रेस्ट हाउस भी बनने वाला है,कल शायद यहां रोप वे या फिर कोई हैली पैड बन जाए। तुम फिर सैकड़ों से हज़ारों में आएगें। गांव के लड़के अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर गाइड बनने लग पडे़ हैं। वे अब खेतों में काम नहीं करते, उनके सपनों में बदलाव आ रहा है तुम लोगों ने उनके जिंदगी में बेवजह दखल दे लिया है ठीक जैसा तुमने प्रकृति ,पहाड़ की जिंदगी में डाला है।’’ मर्सीडीज दीपक की बातों से दुखी हो गई पर वह तर्क के साथ बोली ,‘‘तो क्या तुम ऐसे ही गरीब भेड़ पालक बने रहना चाहते हो? तुम क्या जिंदगी नही जीना चाहते हो,क्या तुम्हारी इसी फटेहाल जिंदगी से आगे भी कुछ है उसे देखना,पाना नहीं चाहते हो?’’
दीपक मर्सीडीज की आंखों में देखकर बोला,‘‘कैसी जिंदगी मैम,जब ईश्वर ने हमें प्रकृति के बीच में पैदा किया,हमारे लिए रहन सहन खाने पीने का इंतजाम किया तो फिर हम कौन सी जिंदगी जिएंगे। ये जंगल हमें हर कुछ देता हैं लकड़िया ,जड़ी बूटियां ,औषधियां।खेत अनाज उगा रहे है हर साल ,नदी हर दिन पानी से लबालब है,मौसम अपनी चाल में अपनी कृपा बरसा रहे हैं तो हम कौन सी जिंदगी जीना चाहेंगे, मुझे यही समझ नहीं आता! मुझे तो असली दुख यही है कि हमारे गांव की संस्कृति अब पर्यटन संस्कृति बन रही है,गांव के लड़के तुम्हारे बड़े-बड़े बैगों को उठा रहे हैं ,तुम्हारे साथ टूटी फूटी अंग्रेजी बोल कर कुछ पैसे ऐंठ रहे है। वो रोजगार के सपने देख रहे हैं वो सड़क के किनारे ढाबे डाल रहे है वो अब जंगल नहीं जाते,नदी के किनारे नही जाते,वो अब तुम्हारे लिए हर सुविधा के बदले पैसे के सपने लेते हैं और कइयों के सपने तो पूरे भी हो रहे हैं । गांव की तस्वीर बदल रही है यह आखिरी गांव अब पर्यटको की गाड़ियों की धूल में हमेशा नहाने लग पड़ा है।’’
मर्सीडीज अब दीपक की बातों से परेशान हो चुकी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि दीपक कौन सी दुनिया की बातें कर रहा है क्या वह एक विद्रोह की चिंगारी को सुलगा रहा है,वह प्रकृति प्रेम में मानवीय जीवन की प्रकृति ही नहीं समझ पा रहा है। वह बोली ,‘‘दीपक मैं तुम्हारे मन की व्यथा समझ रही हूं पर आखिर तुम भी धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने वाले,अच्छी शिक्षा के लिए इस गांव के स्कूल से दूर कालेज तक गए होगे,ये भी परिवर्तन का हिस्सा था ,क्या तुम पढ़े -लिखे नहीं होते तो तुम्हारी सोच कुछ और होती,तुम नई सुविधाएं लेने के बाद प्रकृति प्रेेम की बातें कर रहे हो! क्या तुम अनपढ़ ही बने रहना चाहते थे? अब तुम्हारे विचार सुने जा रहे हैं वर्ना यहां कई देहातियों की ओर हम अभी ध्यान से देखते भी नहीं।’’
दीपक अपने तर्क के साथ फिर बोल पड़ा,‘‘ नहीं मर्सीडीज! मैं यह चाहता हूं कि ये बदलाव हम प्रकृति के विरूद जा कर कर रहे हैं। क्या गद्दी लोग जो पहाड़ो, चरागाहों ,नदी ,नालों में अपनी रेवड़ के साथ खाक छानते हैं ये ठीक काम नहीं कर रहें,ये प्रकृति के संग जी रहे है । इन्होंने पूरा जीवन यही काम किया फिर इनकी औलादों ने इनके काम से नफरत पाल ली। वे शिक्षा ,विस्तार परिवर्तन के सपने देखने लगे,उनकी भेड़ें-बकरियां धीरे-धीरे खत्म हो गई।वे औलादें यह तो किसी की नौकर बन गई या फिर बेरोजगारी के पहाड़ में दब गए। उनके लिए यही पहाड़ नदियां,घाटियां ही अभिशाप नजर आने लगी। वे अपनी मानसिकता के भ्रम में फंसते गए। उन्होंने नए पन के सपने में सब कुछ छोड़ दिया। अब उनके शरीर नए सपनों के अलावा कुछ नहीं सोचते,वे मति भ्रम में जी रहे हैं। क्या उन्हें प्रकृति ने अभी भी अपने पुत्र नहीं माना है।’’
मर्सीडीज बोली,‘‘ देखो दीपक!तुम्हारे लिए तो प्रकृति मेहरबान है, पर क्या बीहड़ो रेगिस्थानों में रहने वाले भी यही गलते सड़ते रहें,उनके लिए परिस्थ्तिियां भिन्न हैं मैं कई सुनसान जगहों में गई हूं जहां लोग प्रकृति से भी कुछ नहीं पाते,वे नारकीय जीवन जी रहे हैं।’’ दीपक ने अपना तर्क नही छोड़ा, ‘‘मुझे लगता है कि उन्होंने जीने की कला छोड़ दी होगी,क्या रेत के सांप को कुछ खाने पीने को नहीं मिलता,क्या वह वे रेत छोड़ देता है,क्या खारे पानी की मछलियां मीठे पानी की झीलों के सपने लेती हैं?या बीहड़ो में जंगली पौधे नहीं उगते?’’
मर्सीडीज अब फिर दीपक की बातों से बेबस नजर आ रही थी उसने अपने सिर के ऊपर से चांद को गुजरते देखा और उठ खड़ी हुई। ‘‘मुझे भूख महसूस हो रही है मेरे बैग में कुछ खाने पीने का सामान है ,मैं बाहर ले आती हूं।’’ दीपक ने उसे एक दम रोक दिया ‘‘बस आप एक दो मिनट रूकें, मैंने आपके खाने लाइक कुछ बनाया है।’’
वह पत्तागोभी की सब्जी व अपने हाथों से बने मोटी चपातियों को एक पुरानी सी एल्यूमीनीयम की प्लेट में लाकर मर्सीडीज के लिए आग के अंगारों में गर्म करने लगा। ‘‘ये सब्जी इन्हीं खेतों से निकलती है यह आपके खाने में सही होगी। आप चखें तो सही। मैंने अपने लिए बनाई थी। आप के बैग में तो शायद चाकलेट ,बै्रड सूप बगैरा होगा।’’
मर्सीडीज छोटे -छोटे चपाती के टुकड़ो को सब्जी के साथ खाती रही और खाते हुए बोलती रही,‘‘ये स्वादिष्ट है पर मुझे लगता है दीपक कि तुम्हें अपने मन को समझाना होगा,तुम्हें समझौता करने की आदत डालनी होगी,तुम बहुत सोचते हो ओर यही ज्यादा सोच तुम्हारे लिए तो ठीक हे पर दूसरों की नज़रों में तुम्हे पागल सा घोषित कर देगी। मैं तो कहती हूं तुम अगर ऐसे ही जीना चाहते हो तो जिओ पर दूसरों को अपने हिसाब से जीने दो,वे तुम्हारे रास्ते पर नहीं चलेगें,वे बदलाव के स्वप्न संसार की रचना कर चुके हैं । मैं भी उसी का हिस्सा हूं।पर हां चिंतन करती रहूंगी,तुम एक अच्छे विचारों वाले नौजवान हो पर मैं अपने ख्यालों में जीना चाहती हूं ,मैं घूमना चाहती हूं,इस दूनिया के अथाह रास्तों पर चलना चाहती हूं,इसके सिवा मैं और कुछ नहीं सोचती पर तुमने मेरी सोच में जबरदस्त दखल दे दिया है,तुमने कुछ अलग विचारों के बीज मेरे मन मस्तिष्क की गीली मिट्टी में फैंक दिए हैं अब देखती हूं कि वे अंकुरित होते है या फिर नहीं।’’
दीपक उसे धीरे-धीरे खाता और बोलते देखता रहा। मर्सीडीज फिर बोली, ‘‘दीपक मैं तुमसे एक निजी स्वाल पूछना चाहती हैं अगर तुम्हें बुरा न लगे। क्या तुम शादी करके अपनी पत्नी को ऐसे ही अपनी इस झोपड़ी में रखोगें, क्या उसकी उम्मीदें इच्छाओं का इससे हनन नहीं होगा, शायद वह तुम्हारी तरह जीना नहीं चाहेगी तो फिर तुम क्या करोगे।’’
दीपक हंस दिया और बोला, ‘‘तो फिर शादी ही नहीं कंरूगा, आपने मुझे सचेत कर दिया, मैं आपका धन्यवादी हॅू।’’ मर्सीडीज को लगा कि वह एक साधु जैसे नौजवान की जिंदगी में दखल दे रही है। वह खाना चबाते वक्त सोचती रही कि अगर उसके जैसी युवती अगर ऐसे प्रकृति प्रेमी के हिस्से में आ जाए तो फिर शायद उनकी जिं़दगी कुछ दिनों तो अच्छी चलेगी। वे इस धरा के नजारों को देखेगें, घूमंेगे, रेवड़ांे को हांकेगें, फिर वे सब सुविधाओं को त्यागते जाएगें, वे फिर से ऐसी जिंदगी में चले जाएगें जिससे निकलने के लिए इंसानों ने वर्षो लगा दिए। क्या वे सब बेवकूफ है या फिर दीपक बेवकूफ। उसे फैसला करना था कि क्या सही है पर वह फैसला नहीं कर पाई। उसे लगा वह भी दीपक की बातों से भ्रमित हो गई है। उसका मन अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है। कि वह फैंसला कर ले।
उसे लगा, नहीं वह तो बहुत ही कमजोर युवती है। उसका मन कर रहा था कि दीपक जैसे संन्यासी के कदमों में गिर जाए और उससे कई वर्षो तक बातें करती रहे। उससे मन में उठे हर प्रश्न का जबाब पूछती रहे। वह अपने आप को इतना विनित जिंदगी में पहली बार महसूस कर रही थी। दीपक ने उसकी आत्मा को उसकी आंखों के सामने ला खड़ा कर दिया था। वह अब उस आत्मा के स्वरूप को समझने की कोशिश कर रही थी। फिर मन ने एक लहर उठी और उसने अपने आप को उस लहर के आगे नतमस्तक कर दिया। वह हार गई एक हिदुस्तानी युवा लड़के के सामने। दीपक ने उसको चंगुल से निकाल दिया,‘‘ हम सुबह तड़के मून पीक के कैंप की ओर रवाना होगें अब तुम सो जाओ मर्सीडीज। पेनकिलर खा लो जो शायद तुम्हारे पास होगा और पट्टी को बांधे रखना।’’ शुभ रात्री के साथ ज़मीन के सहारे मर्सीडीज नींद की आगोश में चली गई। वे स्वप्न में एक हिंदू राजकुमार के संग अरावली पर्वत के अनोखे रास्तों की सैर को निकली थी, उसे लग रहा था कि उसका मन व आत्मा हिंदू राजकुमारी जैसी थी पर सोच में एक स्पेनिश लड़की जैसे विचार व दृष्टिकोण था। वह एक हिंदू मित्र राजकुमार के साथ उसके इतिहास व सभ्यता की बातें चर्चा करती रही।
सुबह तड़के ही मर्सीडीज को दीपक ने उठा दिया। अभी शायद वो फिर किसी सपने में थी जो अब किसी फिल्म के रील रूक जाने पर अंधेरे में बदल गया था। सुबह बकरी के दूध की चाय पीकर वो चढ़ाई चढ़ने लगे। रास्ते में दीपक उससे कोई बात नहीं कर रहा था। दोनों अपने पुराने वार्तालाप के जंजाल से निकलकर मन को अन्जानी राहों की तलाश में लगा रहे थे। घंटे भर के बाद एक तीखी चढ़ाई के बाद मून पीक के नज़ारा उनकी आंखों के सामने था।
ग्रेनाइट के पत्थर व चट्टानों पर चांद की रोशनी चित्रकारी कर रही थी। मर्सीडीज बोली,‘‘ओह माइ गाड! इस अदभुत नजारे के लिए मै इस कठिन चढ़ाई की योजनाएं बनाती आ रही थी,धन्यवाद दीपक,तुम्हारे कारण और तुम्हारी प्लानिंग ने मुझे यह अहसास करवा दिया कि मैंने चोट के बाद कुछ खोया नहीं हैं।’’
दीपक मुस्करा दिया। वह बोला ,‘‘मैं यह गाइड जैसा काम कभी नहीं करना चाहता था। पर फिर भी मुझे आखिरी बार तुमने गाइड बना ही दिया, मैंने कभी गाइड न बनने का प्रण लिया था पर तुम्हारे कारण मैं मजबूर हुआ था शायद ईश्वर व प्रकृति दोनों ने ऐसा ही कोई प्रंपच रचाना था।’’ वह मून पीक को देखता रहा पल भर। आगे घाटी पसरी थी। बेस कैंप के टैंट से आती एक रोशनी की लकीर साफ देखी जा सकती थी। सुबह का चांद अपनी बची -खुची रोशनी को वहीं छोड़कर सोने की तैयारी करने वाला था। दीपक का मन रात के वार्तालाप से परेशान हो रहा था उसे लग रहा था कि जैसे उसने अपने विचारों के संताप से एक चंचल आध्ुानिक विदेशी लड़की के मन को बेवजह पीड़ा दे दी हो,उसे आत्मग्लानि हो रही थी।
मर्सीडीज दीपक के हाव भाव पहले ही पढ़ चुकी थी। वह अब फिरसे अपने चेहरे से चांद की रोशनी को उतार कर दीपक के विचारों के अंधेरे को ओढ़कर बोली,‘‘मुझे पता है दीपक तुम क्या सोच रहे हो, तुम अपने विचारों से खुद ही पीड़ित महसूस हो रहे हो,जब तुमने सब सच्चे मन से मुझसे शेयर किया है तो फिर पश्चाताप में क्यों जल रहे हो? तुममें हिम्मत ,विश्वास होना चाहिए कि तुम ठीक कह रहे हो,तुममेे जिद्द होनी चाहिए कि तुम ठीक हो।वर्ना यह सब बेकार है अपने विश्वास पर कायम रहो,हे बहादुर नेक दिल दीपक !’’
दीपक और मर्सीडीज कैंप में पहुंच गए। पूरा दल तब तक उठ चुका था। वहां लगभग 10-12 टैंट लगे थे और कुछ लोग भी थ,े कुछ विदेशी और कुछ लोकल। मून पीक की चोटी की चढ़ाई में मदद करने वाले गाइड व सहायक। ऊपर एक अलग ही दुनिया थी। मर्सीडीज को वहां पहुंचा देखकर पूरा दल खुश हो चुका था और दीपक के कानों में दर्जनों धन्यवाद भरे शब्द आ रहे थे। दीपक वापिसी की तैयारी में चलने को हुआ। मर्सीडीज ने उससे मोबाईल नम्बर लेना चाहा जो दीपक के पास नही था। मर्सीडीज ने आखिरी बार धन्यवाद से दीपक को बाय-बाय कहा।
कोई सात-आठ वर्ष बीत गए।मर्सीडीज साल -छः महीने के बाद अपने गाइड कमल से दीपक का हाल चाल पूछती रही थी। वह कई बार कमल के जरिए दीपक से भी बात करती रही थी। वह खुश होकर दीपक को बताती थी कि वह दीपक के विचारों पर एक उपन्यास लिख रही है जो एक प्रकृति प्रेम के लिए पागल लड़के की जिंदगी के आस -पास घूमता है, इसकी पृष्ठ भूमि भारतीय ही है। वह इससे पहले भी कई बार कमल से दीपक के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर कई बातें जानती रही थी। इस बार उपन्यास का विमोचन होते ही उसने दीपक से बात करने के लिए कमल को जैसे ही फोन किया।
कमल ने उसे एक अति दुखद समाचार सुनाया, ‘‘मैडम दीपक और उसकी भेड़ें अब इस जहान में नहीं हैं। इस बरसात में एक भयानक बादल मून पीक के पास फटा और तेज पानी के बहाव में दीपक और उसकी भेड़ें करोड़ों टन मलबे में दब गई। अब न दीपक की झोंपड़ी बची है और न ही उसकी ज़मीन।बड़ा भयानक नज़ारा है वहां का अब तो कोई विदेशी टै्रकर भी वहंा नही आता है।
वे मून पीक के लिए दूसरे टैªक से जाने लगे है जिस रास्ते से हम मून पीक के लिए जाते थे वो तो बादल फटने से गिरे पहाड़ में कहीं खो गया है वह रास्ता अब सुरक्षित नहीं है,किसी गाइड ने उस रास्ते की बजाए नए रास्ते की ओर से कुछ पर्यटकों को ले जाना शुरू कर दिया है। अब शायद कुछ वर्षो बाद पहले सा माहौल बन जाए,पर दीपक का गांव अब टै्रक गूगल के मैप रास्ते से भी हट गया है। मर्सीडीज ने फोन सुनकर एक दुख भरी लंबी सांस ली।उसकी तीन साल की बेटी उसके पास आकर बोली, ‘‘क्या हुआ माॅम,क्या हुआ?
मर्सीडीज बोली,‘‘तुम्हारे इंडियन हीरो अंकल दीपक जिसके नाम पर मैंने प्रकृति प्रेम पर उपन्यास लिखा है, वह अब सचमुच ही प्रकृति के रास्ते की बाधा बन गया था, इसलिए प्रकृति ने उसे अपने रास्ते से हटा दिया है।’’ नन्हीं मारिया को कुछ समझ नहीं आया और वह अपनी माॅम के कमरे से दूसरे कमरे में चली गई। वह वहां पड़े एक खिलौने से खेलने लगी। मर्सीडीज की आॅंखों में उस भारतीय टूर के दृष्य, बिताए पलों को परत दर परत खोलते हुए तैरने लगे जो उसने दीपक के साथ बिताए थे। उसके बाद उसके उपन्यास में हीरो बने दीपक के इर्द गिर्द बिताए हर पल उसकी आंखों में आॅंसू की बरसात को न्यौता देने लगे। वह सोचने लगी-क्या किसी हीरो के साथ ऐसा भी हो सकता है? प्रकृति क्या ऐसी भी होती है? प्रकृति क्या ऐसी होती है………! पहाड़ का देवता सचमुच क्या दीपक से ही नाराज हो चुका होगा।
— संदीप शर्मा