लघुकथा – ग़रीब की ताक़त
“बेटा, तू ढंग से खाना खाता नहीं ।पौष्टिक भोजन करेगा तभी तो खेलकूद ,पढ़ाई लिखाई में अव्वल आएगा।”
राजू की मम्मी कह रही थीं।
राजू ने बाल सुलभ चपलता के साथ कहा,”मम्मी, क्या सचमुच फल, मिठाई, अंडा खाने ताकत आती है?”
मम्मी ने सब्जी काटते -काटते कहा,”हाँ भई हाँ । चलो जल्दी से नाश्ता कर लो ।”
राजू ने थोड़ा सोचने वाले अंदाज से कहा,”पर मम्मी, हमारे यहाँ जो माली काका हैं न, वो तो रात का बचा हुआ बासी चावल खाते हैं पर उनमें बड़ी ताकत है। वे दिनभर मेहनत का काम करते हैं और हमारी कामवाली आंटी का बेटा हर खेल में अव्वल आता है। आप ही कहती हैं वो लोग बहुत गरीब हैं। उसे तो फल, अंडा कुछ नहीं मिलता फिर वो कैसे सब खेल में जीत जाता है?”
मम्मी राजू की समझदारी भरी बातें सुनकर अचरज में पड़ गई। उन्होंने राजू के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा, “हाँ, बेटा, गरीबों की ताकत उनकी खुद की हिम्मत होती है क्योंकि वे गरीबी से लड़ने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।”
यह सुनकर राजू गरीबों की ताकत के बारे में सोचने लगा।
— डॉ. शैल चन्द्रा