कविता

हिन्दी

कहते हो
हिन्दी है
माथे की बिन्दी
आन बान शान हमारी
फिर क्यों
सिर्फ एक दिन
हिन्दी दिवस
या एक पखवाड़ा
होता है नाम हिन्दी के
क्यों हर साल
सिर्फ रीति भर
कर के जलसे
कर के आयोजन
कर के गोष्ठियां
मनाते इसे त्योहार भर
फिर सब जाते भूल
क्यों है ज़रूरी
फिर मनाना “हिन्दी दिवस”
लगाना नारे
जय हिन्दी
सिर्फ नाम भर को
एक दिन
एक सप्ताह
है गर शान आन बान
हिन्दी हमारी
बसती दिलों में ये बोली
फिर सिर्फ
औपचारिकता
भर न करो
सिर्फ एक दिन
एक पखवाड़ा
हिन्दी को अर्पित
है हिन्दी माथे
की बिन्दी
तो रोज़ सजाओ
रोज़ बनाओ
इसे अपने जीवन का हिस्सा
है मातृभाषा
है अभिमान
है गौरव
है पहचान
ये भाषा अपनी हिन्दी
अपनाओ इसे दिल से
न सिर्फ दिखावे भर
बना इसे उत्सव
एक दिन का
एक पखवाड़े का।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |