गीतिका/ग़ज़ल

बेटी बचाएँ

ज़मीं से उठाकर फ़लक पर बिठाएँ।
अहम लक्ष्य हो, आज बेटी बचाएँ।

जहाँ घर-चमन में, चहकती है बेटी
बहा करतीं उस घर, महकती हवाएँ।

क़तल बेटियाँ कर, जनम से ही पहले
धरा को न खुद ही, रसातल दिखाएँ।

बहन-बेटी होती सदा पूजिता है
सपूतों को अपने, सबक यह सिखाएँ।

पढ़ाती जो सद्भाव का पाठ जग को
उसे बंधु! बेटे बराबर पढ़ाएँ।

न हो जननियों, अब सुता-भ्रूण हत्या
वचन देके खुद को अडिग हो निभाएँ।

है सच “कल्पना” बेटी बेटों से बढ़कर
कि अब भेद का भूत, भव से भगाएँ।

-कल्पना रामानी,नवी मुम्बई

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]