मुक्तक
द्वेष की खाई न क्यों कर पाटते हैं
और सदा सत्ता के तलवे चाटते हैं
हो ना अर्जुन सा धनुर्धर दूसरा भी
एकलव्यों के अंगूठे काटते हैं
— मनोज श्रीवास्तव
द्वेष की खाई न क्यों कर पाटते हैं
और सदा सत्ता के तलवे चाटते हैं
हो ना अर्जुन सा धनुर्धर दूसरा भी
एकलव्यों के अंगूठे काटते हैं
— मनोज श्रीवास्तव