ख्वाहिशों का ज़ख़ीरा
ख्वाहिशों का ये ज़ख़ीरा दिल मे गर रह जाएगा।
ज़ख्म एक रिसता हुआ सा उम्र भर रह जाएगा।।
कूच करके चल दिए, इस पार से उस पार जो।।
जिक्र अब उनका ज़ुबाँ पे रस्म भर रह जाएगा।।
कुछ देर जो आग़ोश में ख्वाबों की रहने दो मुझे।
कुछ देर को कांधे पे मेरे उसका सिर रह जायेगा।।
आँखों के दरिया को अपने तू ज़रा काबू में रख।
मैं अगर डूबा तो तलाश-ए-गुहर रह जाएगा।।
फासलों के बाद भी क्या होगा गर ऐसा हुआ।
मैं अगर तुझमें, तू मुझमें अगर रह जाएगा।।
उसने नज़रंदाज़, हर मंज़र ये सोच कर किया।
दिल लगा राहों से, मआल-ए-सफर रह जाएगा।।
लौटते हैं कब परिंदे आसमां छू कर ‘लहर’।
घोंसला खाली लिए बूढ़ा शज़र रह जायेगा।।