कविता

हिन्दी का अपना होगा…

हम भी हिन्दी तुम भी हिन्दी
हिन्दी अपनी पहचान है
हिन्दी भाषा हिन्दी अभिलाषा
हिन्दी से हिन्दुस्तान है
हिन्दी भाने लगी विश्व को
जहाँ देखो वहाँ हिन्दी है
जो अपनाता वो हो जाता
इसका, ऐसी प्यारी हिन्दी है
श्रेष्ठ व्याकरण करें निराकरण
पंत प्रसाद की श्वांस बनी
बनी महादेवी की कविता
दिनकर का उजास बनी
गद्य पद्य की बहु कलाएं
इंद्रधनुष के रंग बनी
रस-अलंकार को पाकर
कवि कविता का संग बनी
लिए विशाल कलेवर अपना
अन्य बोलियाँ अंग बनी
कहीं असि की प्रखर धार सी
कहीं ढ़पली संग चंग बनी
मेरी हिन्दी सबकी हिन्दी
ये मंत्र जपना होगा
सच मानो फिर धरा-गगन
हिन्दी का अपना होगा
व्यग्र पाण्डे 

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201