चिड़ियों की भी एक भाषा होती है : एक वैज्ञानिक तथ्य
अभी हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि पक्षी भी हम मानवों जैसे एक-दूसरे से हमारे जैसे भाषा का प्रयोग करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी भाषा की तरह चिड़ियों की भाषा में भी शब्द, अक्षर और वाक्य मौजूद रहते हैं। बहुत दिनों से वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए थे।
स्विट्जरलैंड में ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने आस्ट्रेलियाई पक्षी ‘ चेस्टनट-क्राउंड-बब्लर ‘ की आवाज़ का विश्लेषण किया और पाया कि मानव की तरह वे भी अपनी भाषा को तोड़-मरोड़कर कई तरह से बोलते हैं।
‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ सांइसेंज ‘जर्नल में प्रकाशित वैज्ञानिक शोध में इस बात को बताया गया है कि चिड़ियों की भाषा भी मनुष्यों की भाषा की ही तरह छोटे-छोटे अक्षरों से मिलकर बनी है, जो संगठित होकर किसी शब्द या वाक्य की तरह प्रयोग किए जाते हैं।
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के बायोलोजिस्ट एंड्रू राडफोर्ड के पक्षियों के बारे में शोध को करंट बायोलोजी जर्नल में प्रकाशित लेख के अनुसार आस्ट्रेलियाई पक्षी सॉन्गबर्ड और भारतीय पक्षी हमिंगबर्ड इतनी अक्लमंद होती हैं कि वे दूसरी पक्षियों की भाषा को भी समझ जाती हैं।
चिड़िया अपने पारिवारिक सदस्यों मसलन वे आपस में अपने पति, पत्नी और बच्चों की आवाज को बखूबी पहचानते हैं, वे अपने बच्चों की ‘भूख और प्यास’ लगने पर उनकी आवाज को अविलम्ब पहचान कर तुरंन्त उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। किसी शिकारी पक्षी या जीव जैसे ब़ाज, बिल्ली, नेवला या सांप को अपने पास फटकने से पूर्व ही वे अपनी प्रजाति सहित वहाँ उपस्थित अन्य सभी प्रजाति की पक्षियों को भी ‘एक अलग तरह की तेज आवाज़’ निकालकर समय से कुछ सेकेंड पूर्व ही सूचित कर देती हैं और वे सभी बिना समय गंवाए अपने बच्चों सहित सुरक्षित ठिकानों पर चली जाती हैं, इसी प्रकार खाने के अच्छे श्रोत को देखने पर अपने पूरे समूह को एक अलग तरह की आवाज़ में ‘सामूहिक भोज’ के लिए आमंत्रित करतीं हैं, कुछ पक्षी मुँह से आवाज़ न निकाल कर अन्य शारीरिक हावभाव जैसे पंखों को तेज फड़फड़ाकर (जैसे ड्रमर पक्षी) या अपनी चोंच को टकराकर (जैसे सारस) बजाते हैं। कुछ पक्षी जैसे लायर और मोर अपने प्रणयकाल में बहुत सुन्दर नृत्य करके अपनी प्रिय मादा को रिझाते हैं।
चूँकि अब पक्षियों की भाषा की भी खोज हो चुकी है, इसलिए हम मानवों का कर्तव्य है कि इन विभिन्न पक्षियों द्वारा बोली जानेवाली भाषाओं के अस्तित्व को बचाने की हमारी महती जिम्मेदारी है, अतः हमें पेड़ों, बगीचों और जंगलों का दोहन कम से कम अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही करनी चाहिए, नहीं तो इन सुन्दर भाषाओं को बोलने वाली ये मनोहारिणी, रंगबिरंगी पक्षी विलुप्त हो जायेंगी। इन्हें हर हाल में बचाना हमारा अभीष्ट और पावन कर्तव्य है।
— निर्मल कुमार शर्मा