राजनीति

इस्लामी आतंकवाद को कैसे नेस्तनाबूद किया जाए?

कट्टरपंथी मुसलमान हिन्दू बहुल भारत को ‘इस्लामी विजय का एक अधूरा अध्याय’ मानते हैं। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि दुनिया के बाकी सभी वो देश, जिन पर इस्लाम ने विजय प्राप्त की , इस्लामी आक्रमण के केवल दो दशकों के भीतर 100% इस्लाम में परिवर्तित हो गए। परन्तु भारत में ऐसा नहीं हो सका। 800 वर्षों के अत्याचारी बर्बर मुस्लिम शासन के बाद भी अविभाजित भारत में 75% हिन्दू आबादी थी। कट्टरपंथी मुसलमानों को यही बात आज तक सता रही है कि मुसलमानों द्वारा किए गए बेहिसाब जुल्मों के बावजूद वो मुस्लिम आतंकवादी हिन्दुओं का मनोबल तोड़ने में क्यों सफल न हो पाए। हर दंगे के बाद नियुक्त किए गए जांच आयोगों की रिपोर्टों के अधार पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1947 से लेकर आज तक जितने भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए हैं उन सबकी शुरूआत कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा ही की गई। यहां तक कि गुजरात दंगों की शुरूआत भी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा गोधरा में 56 हिन्दुओं को जिन्दा जलाकर की गई। आज की परिभाषा के अनुसार मुसलिम आतंकवादियों द्वारा किए गए ये सबके सब हमले आतंकवादी गतिविधियां हैं। बेशक भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं लेकिन फिर भी कट्टरपंथी हिंसक मुसलमान हिन्दुओं पर जानलेवा हमले करने का दुस्साहस करते हैं। भारत के अन्य मुसलमान इन हमलों को या तो मौन स्वीकृति देते हैं या फिर इनमें कूद पड़ते हैं या फिर हिन्दूओं के मारे जाने का तमाशा देखते हैं। भारत में अत्याचारी बाबर से लेकर कातिल औरंगजेब तक और औरंगजेब से लेकर आज तक हिन्दूओं का कत्लेआम ही मुसलमानों का इतिहास है।कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा किए जाने वाले हमलों के लिए हिन्दू ही दोषी हैं।

कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा हिन्दूओं को निशाना बनाए जाने के लिए मैं मुसलमानों के बजाए हिन्दूओं को ही दोष देता हूं। मैं इन हमलों का दोष उन हिन्दूओं को देता हूं जिन्होंने सनातन धर्म में बताई गई आत्मा और परमात्मा की अवधारणा को चरम पर ले जाते हुए खुद को अपने आप तक सीमित कर लिया। लाखों हिन्दू बिना किसी सरकारी सहयोग के अपने आप को व्यवस्थित कर कुम्भ मेले में इकट्ठे हो सकते हैं , लेकिन मेले के बाद ये सब हिन्दू कशमीर, मेल्विशरम और मलप्पुरम व अन्य विधर्मियों के बहुमत वाले इलाकों में हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ अभियान के तहत मुसलमानों द्वारा निशाना बनाए जा रहे हिन्दूओं की पीड़ा से बेखबर, हमले के शिकार हिन्दूओं की सहायता के लिए बिना कोई संगठित कदम उठाए घर की ओर लौट जाते हैं। कट्टरपंथी मुसलमान हिन्दूओं को निरूत्साहित करने के लिए हिन्दूओं को निशाना बनाकर हमले करते हैं ताकि हिन्दू अपने उन अधिकारों को छोड़ दें जो कि उन्हें नहीं छोड़ने चाहिए।इन हमलों का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति को कमजोर कर अन्त में भारत को समाप्त कर दारूल इस्लाम की स्थापना है। ये 1000 वर्ष से लड़े जा रहे हिन्दूविरोधी भारतविरोधी युद्ध का वो अधूरा उद्देश्य है जिसकी बात ओसामा बिन लादेन अक्सर करता था।असल में मुसलिम आतंकवाद वही हथियार है जिसका उपयोग सुहरावर्दी और जिन्ना द्वारा 1946 में हिन्दूओं को पाकिस्तान बनाने की मांग मानने को मजबूर करने के लिए बंगाल में किया गया।कांग्रेस पार्टी ने हिन्दूओं का प्रतिनिधि बनकर मुसलिम आतंकवाद के आगे घुटने टेकते हुए देश के भारत का 25% हिस्सा धर्मनिर्पेक्ष थाली में सजाकर मुसलिम आतंकवादी जिन्ना के हबाले कर दिया। अब ये मुसलमान बाकी बचे 75% हिस्से पर आतंकवाद को हथियार बनाकर कब्जा करना चाहते हैं।भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए, भारतविरोधी इस्लामिक आतंकवाद के हाल के इतिहास से हमें सबसे पहला सबक ये सीखने की जरूरत है कि आतंकवाद के निशाने पर हिंदू हैं और भारत के मुसलमानों को धीमी प्रक्रिया के द्वारा आतंकवादी बनने के लिए क्रमादेशित किया जा रहा है ताकि वो हिन्दूओं के विरूद्ध आत्मघाती हमले करने पर आमादा हो जायें।हिंदू मानस को कमजोर करने और गृहयुद्ध का डर पैदा करने के लिए इन आतंकवादी हमलों को अन्जाम दिया जाता रहा है।और इसलिए क्योंकि आतंकवादियों के निशाने पर हिन्दू हैं, हिन्दूओं को हिन्दूओं के रूप में ही भारतविरोधी आतंकवादियों के विरूद्ध संगठित होकर जवाबी कार्यवाही करनी चाहिए ताकि कोई हिन्दू खुद को अलग थलग या लाचार महसूस न करे। । हिन्दू को इसलिए आतंकवाद से मुंह नहीं फेर लेना चाहिए कि अभी तक उसके परिवार का कोई सदस्य इस आतंकवाद का शिकार नहीं हुआ है।

आज अगर एक हिन्दू सिर्फ इसलिए मारा जाता है क्योंकि वह हिन्दू है तो यह सब हिन्दूओं की नैतिक मौत है। ये विराट हिन्दू का एक जरूरी और आवश्यक मानसिक रवैया है। इसलिए हिन्दुओ को मुसलिम आतंकवाद का सामना करने के लिए हिन्दू के नाते सामूहिक मानसिकता की जरूरत है। इस जवाबी कार्यवाही में भारत के राष्ट्रवादी मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ आ सकते हैं, अगर वो सच में हिन्दूओं के कत्लेआम के विरूद्ध हैं तो। मैं नहीं मानता कि भारतीय मुसलमान हिन्दूओं पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध तब तक हिन्दुओ के साथ आयेंगे जब तक वो इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करते कि बेशक वो आज मुसलिम हैं, लेकिन उनके पूर्वज भी हिन्दू ही थे। अपने पूर्वजों के बारे में इस सच्चाई को स्वीकार करना मुसलमानों के लिए आसान नहीं है क्योंकि मुसलिम मुल्ला इसका इसलिए विरोध करेंगे क्योंकि इस सच्चाई को स्वीकारने के बाद एक तो भारतीय मुसलमानों में इस्लाम से मिली आत्मघाती कट्टरता कमजोर हो जाएगी और दूसरा इस सच्चाई को जानने व स्वीकारने के बाद उनकी हिन्दू धर्म में घर बापसी की सम्भावनायें बढ़ जायेंगी।कहीं भारतीय मुसलमान इस सच्चाई को स्वीकार न कर लें इसीलिए मुसलमानों के धार्मिक नेता हर हाल में काफिरों यानी हिन्दूओं के विरूद्ध हिंसा और नफरत का प्रचार प्रसार करते रहते हैं। (उदाहरण के लिए आप कुरान के अध्याय 8 की काफिरों को मार डालने वाली आयत 12 पढ़ सकते हैं।) इस्लामिक आतंकवादी संस्था सिमी(SIMI) पहले ही यह घोषणा कर चुकी थी कि भारत दारूल हरब है और SIMI इसे दारूल इस्लाम बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।भारत का दारूल हरब होना, मुसलमानों को हिन्दूओं का कत्लेआम करने ,हिन्दूओं के मान सम्मान को ठेस पहुंचाने, हिन्दूओं की मां-बहन-बेटियों की इज्जत आबरू के साथ खिलवाड़ करने के साथ-साथ उन्हें हिन्दूओं के प्रति हर तरह के भाईचारा रखने वालों बन्धनों से मुक्त करता है क्योंकि मुसलमानों को कुरान व हदीस में दारूल हरब को दारूल इस्लाम बनाने के लिए ये सब करने का आदेश दिया गया है।

अगर कोई मुसलमान इस बात को स्वीकार करता है कि उसके पूर्वज हिन्दू हैं तो उसे वृहद हिन्दू समाज और हिन्दूस्तान के अंग के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। भारत अर्थात इंडिया अर्थात हिन्दुस्तान हिन्दूओं और अन्य जिनके पूर्वज हिन्दू हैं उन सबका देश है। यहां तक कि भारत में रहने वाले पारसियों और यहूदियों के पूर्बज भी हिन्दू ही थे। अन्य जो भारत से अपना खून का रिश्ता होने की बात को अस्वीकार करते हैं या फिर जिनका भारत से खून का रिश्ता है ही नहीं या फिर वो विदेशी जो मात्र पंजीकरण की बजह से भारतीय नागरिक बने हैं वो भारत में रह तो सकते हैं लेकिन “उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं दिया जा सकता।”
इसलिए आतंकवाद का मुकाबला करने वाली नीति पर अमल करने से पहले हर और प्रतेक हिन्दू का प्रतिबद्ध और विराट हिन्दू बनना जरूरी है। किसी भी व्यक्ति को विराट हिन्दू बनने के लिए एक हिन्दू मानसिकता रखना मतलब उसकी एक ऐसी मानसिकता होना जरूरी है जो “व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र के अन्तर को समझ सके।”राष्ट्रीय चरित्र वो मानसिकता है जो सक्रिय व पूरी ताकत से देश की पवित्रता और अखण्डता के लिए प्रतिबद्ध रहती है।ये कलियुग है इसलिए हिन्दू विरोधी आतंकवादियों व उनके समर्थकों के प्रति किसी भी सात्विक प्रतिक्रिया के लिए कोई जगह नहीं है।गरीबी आतंकवाद का कोई कारक नहीं ।भारत में इस्लामिक आतंकवादियों को प्रेरणा कहां से मिलती है? बहुत से लोग हिन्दूओं को ये सलाह देते हैं कि मुसलिम आतंकवादियों पर जबाबी हमले करने के बजाए आतंकवाद के मूल कारण को खत्म करें। ये लोग मूल कारण भी बताते हैं।निर्दोष हिन्दूओं का खून बहाने वाले आतंकवादियों के लिए हर तरह की सहानुभूति रखने वाले खूनी उदारवादी हमे बताते हैं कि आतंकवाद के पनपने व बढ़ने का कारण अनपढ़ता, गरीबी, शोषण और भेदभाव है। ये तथाकथित उदारवादी कुतर्क देकर मजबूरी को हिन्दूओं की मानसिकता का अंग बना देना चाहते हैं।मुझें नहीं लगता ये कातिल उदारवादी या खूनी बुद्धिजीवी भारत के प्रति वफादार हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी ओसामा विन लादेन अरबपति है।खनिज तेल से वेहिसाब पैसा कमाने वाले अमीर मुस्लिम देश मुसलिम आतंकवादियों को संरक्षण और आर्थिक मदद पहुंचाते हैं। ब्रिटेन में आतंकवादी हमलों को अन्जाम देने के दोषी सबके सब आतंकवादी साधन सम्पन मुसलमान थे।मुसलिम आतंकवादी अनपढ़ भी नहीं हैं। आतंकवादियों के अधिकतर सरगना डाकटर,चार्टड एकौंटैंट(CA),एम बी ए(MBA) और अध्यापक हैं।उदाहरण के लिए दिल्ली में धनतेरस के दिन सैंकड़ों हिन्दूओं का कतल करने वाला आतंकवादी रसायन विज्ञान में सनातकोतर है व टाइम स्क्वायर पर हमले का असफल प्रयास करने वाला आतंकवादी शहजाद MBA है वो भी अमेरिका के एक उच्चस्तरीय विश्वविद्यालय से। उसका सबन्ध पाकिस्तान के एक अमीर परिवार से है।11 सित्मबर,2001 को जिन 9 लोगों के गिरोह ने चार हबाई जहाजों को अगवा कर World Trade Towersसहित अन्य जगहों को निशाना बनाया निश्चित तौर पर उनके साथ भी अमेरिका में किसी तरह का भेदभाव या शोषण नहीं हुआ था। इसलिए ये कहना कि आतंकवाद गरीब आतंकवादियों की देन है पूरी से मूर्खतापूर्ण है।कुछ लोगों का यह कहना कि क्योंकि आतंकवादी मरने-मारने को तैयार हैं,वे अपना विवेक खो चुके हैं,उनका कोई घरबार नहीं है इसलिए उन्हें मारा नहीं जाना चाहिए आतंकवादियों के सरगनाओं की इस आतंकवाद रूपी पागलपन में भी एक सोची समझी रणनीति और योजना है जिसके लिए उन्होंने निश्चित राजनीतिक उद्देश्य चुने हैं।इसलिए हमें आतंकवादियों को कुचलने के साथ-साथ एक ऐसी रणनीति पर अमल करना है जो आतंकवादियों के उद्देश्यों को पूरी तरह से विफल कर दे। ऐसी रणनीति कैसे बनाई जा सकती है।राबर्ट टरैगर और देशीसलाबा(Robert Trager and Dessislava Zagorcheva) ने शोध पत्र आतंकवाद का मुकाबला((‘Deterring Terrorism’ International Security, vol 30, No 3, Winter 2005/06, pp 87-123) में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए रणनीति बनाने के लिए समान्य सिद्धांत बताए हैं।सामरिक योजना अगर मुसलिम समाज आतंकवादियों के इन उद्देश्यों को गैरइस्लामिक घोषित कर इनकी निंदा और विरोध नहीं करता है तो इन सिद्धांतों का उपयोग कर मैं इस्लामिक आतंकवादियों के राजनैतिक उदेश्यों को असफल करने के लिए निम्नलिखित सामरिक नीतिका समर्थन करता हूं :-धारा 370 समाप्त कर,भूतपूर्व सैनिकों को कशमीर घाटी में बसाना। कशमीरी हिन्दूओं के लिए पुनन कशमीर का निर्माण करना,बलूचियों और सिंधियों को आजादी के लिए सहायता देना।

जैसे को तैसा नीति अपनाते हुए काशी विश्वानाथ मन्दिर परिसर सहित 300 अन्य जगहों से मस्जिदों को हटाना।भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू करना,पढ़ाई के लिए संस्कृत को अनिवार्य बनाना,वन्देमातरम् का गान जरूरी करना और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर सिर्फ उन्हीं मुसलमानों और गैर हिन्दूओं को वोट का अधिकार देना जो गर्व से ये स्वीकार करें कि उनके पूर्वज हिन्दू थे।भारत का हिन्दूस्तान(हिन्दूओं और उन गैर हिन्दूओं का देश जिनके पूर्बज हिन्दू हैं) के रूप में पुन : नामकरण करना।
देश में एक ऐसा राष्ट्रीय नियम लागू करें जिसके अनुसार हिन्दू धर्म से किसी भी अन्य धर्म में धर्मांतरण करना वर्जित हो। किसी भी अन्य धर्म से हिन्दू धर्म में घर वापसी इसमें प्रतिबन्धित नहीं होनी चाहिए।
गैर हिन्दूओं द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी जाति में घर वापसी करने का स्वागत करें बशर्ते वे अनुशासन का पालन करने को तैयार हों।भारत में रहने वाले अवैध बंगलादेशियों की शंख्या के अनुसार बंगलादेश की जमीन पर कब्जा कर लिया जाए। आज की संख्या के अनुसार सिलहट से खुलना तक के उतर का एक-तिहाई भारत को अबैध रूप से भारत में रह रहे बंगलादेशियों को बसाने के लिए अपने कब्जे में ले लेना चाहिए।

हिन्दूओं के अन्दर आत्मग्लानी का बोध पैदा करने व उन्हें आत्म समर्पण के लिए मजबूर करने के मकसद से मस्जिदों, मदरसों और चर्चों में लेखन और उपदेश के माध्यम से हिंदू धर्म को बदनाम करना तत्काल बन्द हो।भारत इस तरह की रणनीति अपनाकर सिर्फ पांच वर्षो में अपनी आतंकवाद की समस्या का समाधान निकाल सकता है परन्तु इसके लिए हमें आतंकवाद द्वारा सिखाए गए सबक हर समय याद रखने होंगे और राष्ट्र की रक्षा के लिए साहसिक,जोखिम भरे व कठोर कदम उठाने के लिए हिन्दू मानसिकता का निर्माण करना होगा।

यदि यहूदियों को गैस चैंबरों में जलाए जाने के लिए मिमयाते हुए जाने वाले मेमनों से ज्वलंत शेरों में बदलने में सिर्फ 10 वर्ष का समय लग सकता है तो हिन्दुओं के लिए तो उनसे कहीं बेहतर हालात (आज भी हम भारत का 83 प्रतिशत हैं) में ये काम सिर्फ पांच वर्ष में करना किसी भी तरह से मुशकिल नहीं है।

हिन्दू धर्म में आपाकलीन धर्म का प्रावधान है जिसपर हमें आज के हालात में अमल करना चाहिए। ये हमारे लिए सच्चाई का सामना करने का वक्त है। एक सभ्यता के रूप में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए या तो हमें हिन्दू के रूप में संगठित होकर हिंसक व अत्याचारी इस्लामिक आतंकवादी हमले का मुकाबला करना चाहिए या फिर पर्शियन,वेवीलोनियन और मिस्र की सभ्यता की तरह नष्ट होने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। ये सभ्यतायें अत्याचारी इस्लामिक आतंकवादी हमले का संगठित होकर मुकाबला करने में असमर्थ रहीं इसलिए इनका सर्वनाश हो गया। हमें साम, दाम, दण्ड, भेद नियम का पालन करते हुए हर हाल में अत्याचारी इस्लामिक आतंकवाद का सर्वनाश सुनिश्चित करना चाहिए वरना ये लोग हिन्दुओ को समाप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

— सुब्रमण्यम स्वामी

(प्रस्तुति डाॅ विवेक आर्य)