शिक्षा, हमारा समाज और हमारी सरकारें… एक समीक्षा
‘शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।’ -नेल्सन मंडेला
‘हमारे पुस्तकालयों की जो भी लागत हो, उसकी कीमत एक अज्ञानी राष्ट्र की तुलना में बहुत कम है।’ -वाल्टर क्रोंकाईट
‘आधुनिक शिक्षक का कार्य जंगलों की कटौती करना नहीं, अपितु रेगिस्तान की सिंचाई करना है।’- सी.एस. लुईस
शिक्षा का मानव जीवन, मानव समाज और समूचे राष्ट्र के लिए क्या महत्व है, इसके लिए उक्त उद्धरण काफी हैं। आज भारत में प्राथमिक, मिडिल और उच्च शिक्षा सभी पर केवल मातम मनाया जा सकता है। आज यहाँ की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में चली गई है जो ज्ञान-विज्ञान के वाहक शिक्षा को ही तहस-नहस करने पर उतारू हैं। इस देश के देश भर में फैले प्राथमिक पाठशालाओं, हाई स्कूलों, इण्टरमीडिएट कालेजों और उच्च शिक्षण संस्थानों के लाखों भवन सरकार की घोर उदासीनता और उचित धन आवंटन न होने से खंण्डहर में तब्दील होते जा रहे हैं, वहाँ शिक्षकों की घोर कमी है, क्योंकि ये भारत की सरकारें जानबूझकर नहीं चाहतीं कि यहाँ की आम जनता प्रबुद्ध बने, जागरूक बने, शिक्षित बने ये भारत की जनता को केवल ‘ साक्षर ‘ बनाना चाहतीं हैं (मतलब जिसे केवल ‘अक्षर ‘ का ज्ञान हो ! ) केवल ‘साक्षर ‘ होने और ‘शिक्षित ‘ होने में बहुत फर्क है। साक्षर को बेवकूफ बनाया जा सकता है, उसे धर्मभीरु बनाया जा सकता है, उसे अंधविश्वासी बनाया जा सकता है, परन्तु वास्तव में जो शिक्षित व्यक्ति है उसे उक्त साक्षरों की तरह भेड़-बकरियों की तरह हाँका नहीं जा सकता !
और यही इन सरकारों का उद्देश्य है, ये सरकारें चाहतीं हैं कि भारतीय जनता धर्मभीरु रहे, अशिक्षित रहे, बेरोजगार रहे, अंधविश्वासी रहे, वह केवल अपनी रोजीरोटी और भूख को शमन करने के लिए दिनरात घुलती रहे, इसके अतिरिक्त वह कुछ सोच ही नहीं सके, इसीलिए इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ज्यादे से ज्यादे कुकृत्यपूर्ण कार्य आजकल किए जा रहे हैं। जरा सूक्ष्मतापूर्वक ध्यान दें आज हर जगह राजनैतिक कर्णधारों द्वारा यहाँ तक कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भी अंधविश्वास को अधिकाधिक बढ़ाया जा रहा है, जानबूझकर बेरोजगारी बढ़ाई जा रही है, सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों को बदनाम करके, पैसे का अभाव का निरर्थक बहाना बनाकर निजी हाथों में बेचने का जोरशोर से उपक्रम किया जा रहा है, स्कूलों, कॉलेजों, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की बेतहाशा फीस बढ़ाई जा रही है, ताकि यहाँ का आम आदमी अपने बच्चों को किसी भी तरह से पढ़ा ही न सके।
दूसरी तरफ पूरे देश को धार्मिक अंधविश्वासी और धर्मभीरु बनाने के लिए ‘कुँभ’ जैसे पाखण्ढ फैलाने वाले मेले पर, सालभर खुली रहने वाली चारधाम यात्रा के लिए, इस गरीब देश में भारत की साधारण ट्रेनों में बोरे की तरह ठूंस कर जाने वाली जनता के देश में बुलेट ट्रेन के लिए और पूरे देश के गाँव, कस्बे, शहर और महानगर गरीबी और अव्यवस्था से स्लम बस्ती में रहने वाले अभिशापित आम जनता के लिए कथित स्मार्ट सिटी के लिए अरबों-खरबों रूपये खर्च कर देने की विद्रूपतापूर्ण कृत्य बेहयाई से अंजाम दिए जा रहे हैं !
इसी के परिणाम स्वरूप अभी पिछले दिनों वैश्विक प्रतिष्ठित ‘टाइम्स हायर एजूकेशन ‘ द्वारा घोषित सूची के अनुसार विश्व के उच्च शिक्षा के 300 स्तरीय शिक्षण संस्थानों में भारत के एक एक भी शिक्षण संस्थान के न होने से केवल अफ़सोस और दुःख ही व्यक्त किया जा सकता है, जिस देश के कर्णधार अपने देश में अरबपतियों की संख्या बेतहाशा बढ़ने पर पर बेशर्मों की तरह अपनी पीठ स्वयं थपथपा सकते हैं लेकिन इसी देश में लाखों-करोड़ों लोगों की नौकरी जाने पर और लाखों किसानों की दुःखद रूप से खुदकुशी करने पर अफ़सोस का एक शब्द नहीं निकाल सकते ! इस देश की इस दयनीय हालत के लिए यहाँ की भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था पूर्णरूपेण जिम्मेदार है। इस राजनैतिक व्यवस्था में जब तक वास्तव में शिक्षित, समझदार और देश के हित चाहने वाले लोगों की सहभागिता जब तक नहीं बढ़ेगी तब तक इस देश की हालत और भी उत्तरोत्तर खराब होती ही जायेगी। अतः अब समय आ गया है इस देश का नेतृत्व ‘अच्छे, शिक्षित और अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश हित में कार्य करने वाले लोग सत्ता की बागडोर संभालें।
— निर्मल कुमार शर्मा