कांटों से है प्यार मुझे
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इस जग में आज मेरा
अगर प्रिय होता कोई!
पग में छाले दर्द उभरता
आँसू से भर धोता कोई।
मैंने प्यार किया जीवन में
जीवन ही अब भार मुझे,
रख दूं पैर कहां संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की यह दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज़ उजाडूँ
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना जीना ही जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।
विरह विकल जब होता मन ,
सेज सजाकर सोताकोई।।
फूलों से है उलझन लगती,
कांटों से है अब प्यार मुझे।
देख चुका हूँ शीतलता को,
प्रिय लगता अंगार मुझे।
दुःख के शैल उमड़ते आयें
सुख की नहीं परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो
चआ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यहीं मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
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