कविता

मातृ भाषा

मातृ भाषा

चेतना
चिन्तन
प्रयोजन हूँ मैं
तुम्हारी मातृ भाषा हूँ मैं |
आधार
स्तंभ
परिवेश हूँ मैं
तुम्हारी मातृ भाषा हूँ मैं |
शब्दों का अनंत सागर
समाहित है मुझमें |
असीम संभावनाएँ लिपटी हैं मुझमे |
परिपूर्ण हूँ मैं अनंत विचारों से |
ओजस्वी ,ऊर्जावान हूँ मै
किंतु भयभीत हूँ ,
आंग्ल भाषा से सज्जित अपनी ही संतानों से |
कहीं खो न जाऊँ
भाषाओं की विराट आकाश गंगा में |
पुकारती हूँ तुम्हे ,
करो चिन्तन-
मनन करो –
मेरा उपयोग करो |
मैं तुम्हारी भाषा ,
तुम्हारी पहली आवाज़
हूँ |
तुम्हारे जीवन का श्रंगार हूँ |
हाँ ! मैं तुम्हारी मातृ भाषा हूँ |
मंजूषा श्रीवास्तव

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016