गीत/नवगीत

“छीनी है हिन्दी की बिन्दी”

गौरय्या का नीड़, चील-कौओं ने हथियाया है
हलो-हाय का पाठ हमारे बच्चों को सिखलाया है

जाल बिछाया अपना छीनी है, हिन्दी की बिन्दी भी
अपने घर में हुई परायी, अपनी भाषा हिन्दी भी
खोटे सिक्के से लोगों के मन को बहलाया है

हिन्दीभाषा से हमने, भारत स्वाधीन कराया था
हिन्दी में भाषण करके, सत्ता का आसन पाया था
लेकिन गद्दी पाते ही उस हिन्दी को बिसराया है

चीन और जापान आज भाषा के बल पर आगे हैं
किन्तु हमारे खेवनहारे नहीं नींद से जागे हैं
अन्न देश का खाकर हमने, राग विदेशी गाया है

विश्वपटल पर कैसे होगी, अब पहचान हमारी
वाणी क्यों हो गयी विदेशी, ऐसी क्या है लाचारी
पुरखों के गौरव-गुमान पर भी संकट गहराया है

हुक्मरान हिन्दी के दिन को, हिन्दी-डे बतलायें जब
उन गूँगे-बहरों को अपनी, कैसे व्यथा सुनायें अब
हलवा-पूड़ी व्यञ्जन छोड़े, पिज्जा-बर्गर खाया है

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है