गीत/नवगीत

नया नया कुछ काम करें

क्षण भंगुर ये जीवन अपना, नया नया कुछ काम करें।
प्रेम-प्रीति के सम्बन्धों को, आज हृदय के नाम करें ।।

भीतर का ये अफसाना भी, बाहर जरा उजागर हो ।
मुक्त कंठ से कहें सभी ये, तुम तो दिल के सागर हो ।।
प्यास दबाये बैठे कब से, साँझ जाम के नाम करें ।
क्षण-भंगुर ये जीवन – – – – –

सदा हृदय में विश्वासों के, दीप प्रज्वलित रखना हैं ।
पल-पल हमको संघर्षों के,अँधियारों से लड़ना हैं ।।
अंतस्थल में प्रेम-प्रीति का, निर्मित नूतन धाम करे ।
प्रेम-प्रीति का मन मन्दिर में,सृजित नया ही धाम करें ।
क्षण-भंगुर ये जीवन – – – – – –

नया नया ये सुंदर सपना, अपना अब परवान चढ़े ।
करने को साकार इसे अब,कुछ अपना श्रमदान बढ़े ।।
गीत उकेरें प्रेम-भाव के, चल कर अक्षरधाम करें ।
क्षण-भंगुर ये जीवन अपना, नया नया कुछ काम करें ।।

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)