पहनावा
वह अपने भाई की शादी में मुम्बई से आई थी ।मायका कस्बे में था तो कम ही आना होता था।पिछड़ा हुआ इलाका था तो अब यहाँ के लोग भी पिछड़े हुए लगने लगे थे।वर्षों बाद आना हुआ था तो परिचित-रिश्तेदार पूछपरख कर रहे थे।शादी के कार्यक्रम में और बाद में रिसेप्शन के दौरान वह सभी की नजरों में समाई हुई थी।जिधर से भी गुजर जाती,चाहे छोटे हों या बड़े,सभी की निगाहें उसी पर टिक जाती।उसने एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक ड्रैस खास इन्हीं दिनों के लिए तो सिलवाई थीं।
वैसे भी वह स्वयं लाखों के पैकेज वाली नौकरी कर रही थी और फिर मुम्बई जैसे महानगर में रह रही थी।कार्यक्रम में सभी लोगों की निगाहें अपने ऊपर केन्द्रित पाकर उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान होने लगा था कि उसे अपनी बुआजी की धीमी आवाज सुनाई दी।वे अपनी किसी रिश्तेदार से कह रही थीं कि देखो अपने रामरतन की बेटी कितनी संस्कारी और सादगी पसंद है।फ्रांस जैसे देश में रहने और वहाँ नौकरी करने के बावजूद उसका पहनावा और रहन-सहन बिल्कुल हमारे जैसा है।दूसरी तरफ हमारे यहाँ की लड़कियाँ फिल्मों की देखादेखी कितने भड़कीले और छोटे कपड़ें पहनने लगी है कि सहज ही लोगों की नजरें नारी सौंदर्य की जगह उसके कपड़ो से झांकते अंग-प्रत्यंग पर पड़ती है।ऐसे में देखने वालों को क्या दोष दें!
बुआजी की बात सुनकर वह समझ नहीं पा रही थी कि लोग उसे उसके सौंदर्य के कारण देख रहे हैं या फिर…।