लघुकथा

पहनावा

वह अपने भाई की शादी में मुम्बई से आई थी ।मायका कस्बे में था तो कम ही आना होता था।पिछड़ा हुआ इलाका था तो अब यहाँ के लोग भी पिछड़े हुए लगने लगे थे।वर्षों बाद आना हुआ था तो परिचित-रिश्तेदार पूछपरख कर रहे थे।शादी के कार्यक्रम में और बाद में रिसेप्शन के दौरान वह सभी की नजरों में समाई हुई थी।जिधर से भी गुजर जाती,चाहे छोटे हों या बड़े,सभी की निगाहें उसी पर टिक जाती।उसने एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक ड्रैस खास इन्हीं दिनों के लिए तो सिलवाई थीं।

वैसे भी वह स्वयं लाखों के पैकेज वाली नौकरी कर रही थी और फिर मुम्बई जैसे महानगर में रह रही थी।कार्यक्रम में सभी लोगों की निगाहें अपने ऊपर केन्द्रित पाकर उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान होने लगा था कि उसे अपनी बुआजी की धीमी आवाज सुनाई दी।वे अपनी किसी रिश्तेदार से कह रही थीं कि देखो अपने रामरतन की बेटी कितनी संस्कारी और सादगी पसंद है।फ्रांस जैसे देश में रहने और वहाँ नौकरी करने के बावजूद उसका पहनावा और रहन-सहन बिल्कुल हमारे जैसा है।दूसरी तरफ हमारे यहाँ की लड़कियाँ फिल्मों की देखादेखी कितने भड़कीले और छोटे कपड़ें पहनने लगी है कि सहज ही लोगों की नजरें नारी सौंदर्य की जगह उसके कपड़ो से झांकते अंग-प्रत्यंग पर पड़ती है।ऐसे में देखने वालों को क्या दोष दें!

बुआजी की बात सुनकर वह समझ नहीं पा रही थी कि लोग उसे उसके सौंदर्य के कारण देख रहे हैं या फिर…।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009